Sunday, December 12, 2010

Bhaiya Jee Mar Gaye Ho

''भैया जी मर गये हो या हो जिंदा कुछ तो संकेत दीजिए ......! ''
    लेख -  रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ावाला ''
मां की महिमा शब्दो में बयां नहीं की जा सकती. मां के प्रकार कई है. जगत मां से लेकर धाई मां तक के बारे में हम पुराणो एवं इतिहास के पन्नो तक में किस्से कहानियां पढ़ते चले आ रहे है. जननी से बड़ी होती है जीवन दायनी मां क्योकि उसका त्याग उस मां के कोख के 9 माह के दर्द से ज्यादा होता है. जब बात श्रीकृष्ण के सामने आई कि ''वह आखिर लाल किसका है.........! यशोदा का या फिर देवकी का ......!'' जग के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु ने उक्त सवाल का ऐसा जवाब प्रस्तुत किया कि मां यशोदा को यह पीड़ा ही नहीं हुई कि श्री कृष्ण ने उसकी कोख से जन्म ही नहीं लिया. श्री कृष्ण ने व्याकुल यशोदा को कहा कि ''मां लोग कुछ भी कहे लेकिन सारा संसार मुझे यशोदा तथा नंदबाबा के नाम से नंदलाला के नाम से ही जाना - पहचाना जायेगा....!''   भगवान श्री कृष्ण कहते है कि ''हे मां जननी से बड़ी होती है पालनहारी , इसलिए किसी भी प्रकार का विलाप न कर मां ..... तेरा दर्जा कोई दुसरा नहीं ले पायेगा....!'' आज भी इस संसार में ऐसे कई उदाहरण बताये जा सकते है जिसमें कोख जननी से महान कहलाई है उसकी पालनहारी ...... चाहे वह बात पन्ना धाई मां की हो या फिर रानी लक्ष्मी बाई की जिसने त्याग और ममता की ऐसी मिसाल पेश की है कि आज भी बरसो बीत जाने के बाद लोग उनके नाम के सामने नतमस्तक है. बैतूल जिले में भी संसाद की तरह नदियो को मां की तरह पूजा जाता रहा है. स्वच्छ - निर्मल - पावन जल का भण्डार देने वाली नदियां हमारी संस्कृति का मुख्य अंग है.विश्व की कई संस्कृति एवं सभ्यता नदियो के किनारे जन्मी और उसी के किनारे समाप्त हो गई. जब संसार की उस मालिक ने रचना की थी तब बात चली होगी जल - वायु की ऐसे में नदियो को भी पवन के साथ धरती और आकाश में अवतरीत किया होगा. ताप्ती के बारे में पुराणो में तो यही लिखा है कि भगवान सूर्य नारायण ने स्वंय के ताप से लोगो को मुक्ति दिलाने के लिए सबसे पहले ताप्ती को ही अवतरीत किया था इसलिए ताप्ती आदिगंगा भी कहलाई जाती है. आज इस नदी के धरती पर अवतरण के लाखो - करोड़ो साल बीत चुके है. इस नदी के किनारे कितने ही शहर - गांव और बस्ती बसी और मिट गई और नहीं मिटा तो सिर्फ इसका अस्तीत्व जो आज भी कायम है. सूर्य पुत्री कहलाने वाले मां ताप्ती को लेकर इस जिले के हर व्यक्ति में वही श्रद्धा के भाव है जो गंगा और यमुना तथा सरस्वती के प्रति है. कुछ महत्वाकांक्षी लोगो और लालची स्वभाव के पंडितो तथा महापात्रो ने गंगा को    महिमा मंडित किया जो कोसो दूर है. गंगा में पिण्डदान के बहाने लोगो को ठगने के गोरखधंधे तथा ताप्ती के महत्व को कम आकने के चलते इस जिले की वह नदी आज अपनो के बीच बेगानी हो गई जिसमें मात्र मृत आत्मा को तीन दिन में मुक्ति मिल जाती है. गंगा में प्रतिदिन हजारो अस्थियां लेकर पहुंचते परिजन सोचते होगें कि उसके द्धारा की गई अस्थी विसर्जन से उसके परिजन को मुक्ति मिल गई लेकिन लाखो - करोड़ो की संख्या में अस्थियो का दलदल बनी गंगा में डुबकी लगाने के बाद आपकी अंजुली में यदि किसी की अस्थी न आ जाये तो कहना...... यह कडुवा सच है लेकिन लोग ताप्ती को छोड़ नर्मदा को लांध कर अपने परिजनो की अस्थियां गंगा में लाकर बहा जाते है. साल में वहीं गंगा एक बार पूरी अस्थियों को लेकर मां नर्मदा के पास आकर उन्हे सौप कर उनकी मुक्ति की प्रार्थना करती है. इन सबसे हट कर मां ताप्ती तो किसी भी मृत देह के अंतिम संस्कार के तीसरे दिन ही उसे मुक्ति का सीधा रास्ता दिखा देती है.
                मां  ताप्ती की महिमा के बाद मैं अपने मूल विषय पर आता हँू . लोग कहते है कि ''इसंान की आत्मा जिंदा होती है .......! जिनकी आत्मा जिंदा होती है वही व्यक्ति पुण्य के काम करता है.....!'' मुझे पिछले कई दिनो से ऐसा क्यूं लग रहा है कि ''हमारे जिले के भैया जी की आत्मा भी मर चुकी है.......!'' यदि हमारे भैया जी की आत्मा आज जिंदा होती तो क्या वे इस बात का बर्दास्त कर पाते कि ''उनके सरकार में रहते उनके ही जिले की पुण्य सलिला मां ताप्ती का नाम और महिमा का गान राज्य सरकार ने क्यों नहीं किया....!'' भैया जी तो इस बारे में आज तक किसी से कुछ बोले तक ही नहीं क्योकि आपको अंदर की बात शायद पता नहीं कि ''हमारे भैया जी को पता ही नहीं कि कोई गान - वान भी बना है या लिखा गया है.....!'' यह बात अलग है कि हमारे भैया जी किसी के फटे - पुराने में अपनी टांग नहीं डालते जिसके पीछे अंदर की बात कुछ और भी हो सकती है. ऐसा नहीं कि हमारे भैया जी बैतूल के ही है हमारे भैया जी तो हर उस गांव में है जिसके वे चौधरी बने हुये है. भैया जी हमारे हो या तुम्हारे लेकिन माई तो सबकी है न ऐसे में भी यदि भैया जी की आत्मा ही मर जाये तो फिर आप और हम आखिर क्या कर सकते .....! कुछ उन्नीस - बीस हो गया तो भैया जी को जिंदा करने में साल लग जायेगें तब तक को भैया जी के साले साहब वो धुलाई करेगें कि वाशिंग मशीन भी नहीं कर पायेगी....! अब इससे बड़ी शर्मनाक बात और सामने आई है. प्रदेश की सरकार पड़ौसी महाराष्ट्र सरकार के साथ मिल कर ताप्ती विकास प्राधिकरण बनाने जा रही है. अब ताप्ती विकास प्राधिकरण का मुख्यालय रहेगा वह बुराहनपुर शहर जहां से स्कूली शिक्षा मंत्री श्रीमति अर्चना चिटनीस प्रतिनिधित्व करती है. ताप्ती विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष पद से लेकर सारा लाभांश मैडम चिटनीस और पड़ौसी महाराष्ट्र के लोगो को मिलेगा. काश यदि हमारे भैया जी की आत्मा जिंदा होती तो हम गांव - गांव से भैया जी को शहर और जिला मुख्यालय से दिल्ली तक भिजवा कर इस बात का शोर मचाते कि ''हम अपनी मां के आंचल का दुध किसी और को इसलिए नहीं पीने देगें क्योकि हमारे कंठ अभी प्यासे है.....!'' हम भुख और प्यास से व्याकुल रहना नही चाहते इसलिए हम पहले शांती का पाठ पढाना चाहते है. पूज्य बापू जी और महान संत गुरू नानक देव भी मां ताप्ती के तट पर वही शांती और सदभावना का संदेश दे चुके है. इन सबको हमारी कमजोरी न समझे क्योकि मां ताप्ती के पावन तट पर गोरे अग्रेंजो की नाक में नकेल डालने वाले महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तात्या टोपे भी आ चुके है. हम चुप है तो सिर्फ इस बात के लिए कि हमारे गांव से लेकर शहर और जिले के चौधरी बने भैया जी की एक बार मरी आत्मा में जान आ जाये. लोग रावण की ममी को आज भी श्री लंका की उस अनजान पहाड़ी पर छुपा कर रखे है कि उसमें किसी भी तरह से जान आ जाये लेकिन अभी तो हमारे भैया जी ममी नहीं बने है. इस लेख के पीछे छिपी भावना के दर्द को भैया जी यदि समझ कर अपनी आत्मा को स्वंय के आत्मबल पर यदि जिंदा कर लेते है तो इस जिले का भलां हो सकता है. वैसे तो भैया की आत्मा को जगाने के दस तरीके है लेकिन वे सब ओछे एवं घटिया दर्जे के है जो हमारी संस्कृति के विपरीत है. हम तो बस यही चाहते है कि ''भैया जी की आत्मा जिंदा हो जाये ताकि उनके बहाने हम अपनी मां ताप्ती को वह मान सम्मान दिलवा सके जो आज डाकुओ की शरण स्थली चम्बल को मिल रहा है....!'' भैया जी को आखिर में चलते - चलते एक ही सुझाव है कि वे राम तेरी गंगा मैली का वह गाना जरूर याद रखे जिसमें यह कहा गया है कि ''देर न हो जाये कहीं देर न हो जाये ......!

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