Sunday, December 12, 2010

Samaj Sewa Ka Dard

 ''सहीं समाजसेवा का दर्द......!''
लेख:- रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ावाला ''
मेरे मन में कई दिनो से यह ख्याल बार - बार आता है कि समाजसेवा का दर्द - पीड़ा केवल चंद लोगो को ही क्यों होती है. जब यह बात मेरे एक समाजसेवी मित्र से पुछी तो वह कहने लगा कि ''बांझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा....!'' मुझे उसकी बात पर गुस्सा भी आया लेकिन मैं उस समय चुप्पी साध कर मौके की तलाश में करने लगा. बैतूल जिले में भी समाजसेवा एक फैशन टीवी की तरह लोकप्रिय हो गया है. हर कोई को रह - रह कर समाजसेवा का दौरा पड़ जाता है. कई बार तो इस प्रकार के दौरे दिल के दौरे और मिर्गी के दौरे से भी खतरनाक दिखाई पड़ते है. जिसकी घर - परिवार में दो कौड़ी की इज्जत नहीं होती है ऐसे में ऐसे समाज में अपना रूतबा बए़ाने के लिए समाजसेवा का पाखण्ड करने लग जाते है. हमारे शहर और आपके शहर में ऐसे पाखंडियो की कमी नहीं होगी. समाजसेवा का सुख और उसके पीछे छुपा स्वार्थ कई बार ऐसे लोगो की जब पोल खोलता है तब ऐसे लोग किसी कों मुँह दिखाने के लायक नहीं रहते है. मुम्बई पुलिस ने बैतूल के एक समाजसेवी को जब अपनी बेटी से कम उम्र की लड़की के साथ मुम्बई की एक फाइव स्ट्रार होटल में दबोचा तो इस बात की खबर उड़ती हुई बैतूल पहुंची तो समाजसेवी को लोगो से कुछ दिनो तक अपना मुंह छुपाना पड़ा. बैतूल जिले में समाजसेवा और स्वंयसेवी संगठनो की बाढ़ सी आ गई है. हर किसी पर समाजसेवा का भूत सवार है और वह भी ऐसा की गुरू साहेब महाराज की समाधी पर लेने जाने के बाद भी नहीं उतरेगा. ऐसे लोगो के द्धारा हास्पीटल और चौक चौराहो पर समाजसेवा का नाटक किया जाता है. आज भी जिले में हजारो लोग सेवा का तरसते है लेकिन समाजसेवी इन्हे नज़र नहीं आते है. अपने घरो और दुकानो पर काम करने वाले नौकरो को सही पगार न देने वाले समाजसेवी अकसर मंहगे क्लबो और संगठनो के कत्र्ता - धत्र्ता बन कर अपना उल्लू सीधा करने में लग जाते है. जिले में समाजसेवा के रूप में लायंय क्लब जैसे संगठनो का नाम आता है जिनकी एक पार्टी में एक लाख रूपये तक खर्च हो जाता है लेकिन ऐसे लोग किसी गरीब और मजबुर व्यक्ति को चार आने की मदद तक नहीं करते है. जब बैतूल जिले के जंगलो में गीदड़ - सियार तक नहीं बचे ऐसे में कांक्रिट के जंगलो में शेर की खाल ओढ़े सिार स्वंय को लायन कहलाना पसंद करते है. समाजसेवा नाम बऔर पहचान के लिए नहीं होनी चाहिये लेकिन कोई किसी को समझाये भी कैसे क्योकि अकसर लोग कहा करते है कि ''अंधो के सामने रोओ और अपने नयन खोओ .....!'' जिले में समाजसेवा का विकृत स्वरूप देखने को मिलता रहता है. बैतूल जिला मुख्य चिकित्सालय में बीते दिनो एक गरीब परिवार को खून की तलाश में दर - दर का भिखारी तक बनना पड़ा लेकिन उसकी मदद को कोई भी समाजसेवी नहीं आया. बैतूल जिले में उन समाजसेवियो को जिन्हे समाचार पत्रो एवं न्यूज चैनलो पर स्वंय के थोबड़े को दिखाने की बीमारी रहती है ऐसे लोगो को बेनकाब करने का सहीं समय आ चुका है. बैतूल जिले में इस समय दर्जनो समाजसेवियो को जो कि देशी - विदेशी चंदा और सरकारी सहायता अपने स्वंयसेवी संगठनो के लिए प्राप्त होती है ऐसे लोगो की भी कार्य प्रणाली की समय - समय पर निगरानी करते रहनी चाहिये. समाजसेवा की आड़ में समाज और अपनो से बहिष्कृत लोग अपने हराम केचंद पैसो के बल पर किसी भी संस्था में प्रवेश पाकर उसके कत्र्ता - धत्र्ता बन जाते है. ऐसे लोगो को अकसर एक दुसरे समाजसेवा के क्षेत्र में विशेष कार्य के लिए सम्मानित एवं पुरूस्कृत करते रहते है. अकसर समाजसेवी का मान - सम्मान लोगो को मिलता नहीं बल्कि वे उसे चंद रूपयो में खरीदते है. बैतूल जिले में एक भी समाजसेवी ऐसा नहीं है जिसे किसी गरीब या मजबुर व्यक्ति द्धारा दुआ देकर सम्मानित किया गया हो. ऐसा सम्मान पाने वाले जिले में ढुंढे से नहीं मिलेगे. मेरा अपना अनुभव है कि बैतूल जैसे अभागे जिले में राष्ट्रपति से लेकर सरंपच तक से पुरूस्कृत लोगो की कमी नहीं है. जिले में ऐसे समाजसेवी एक या दो ही हो सकते है जिन्होने अपनी जमीन - जायजाद तक समाजसेवा के पागलपन के पीछे लुटा दी हो. घर की चवन्नी नहीं और रूपये का सम्मान पाने वाले जिले के कुछ तथाकथित समाज सेवक जिले में ऐसे स्वंय सेवी संगठन और समितियो को समय - समय पर रूपैया - पैसा देकर स्वंय को सबसे बड़ा समाजसेवी का मडल पा लेते है. जिले में ऐसे सामाजिक संगठन भी है जो अपनी जात - समाज की प्रतिभा को सम्मान देने के बजाय दुसरी जात और समाज को ही सम्मान देते है. ऐसा करने से उन्हे दोहरा फायदा होता है. पहला तो यह कि सारे कार्यक्रम का खर्चा मिल जाता है और दुसरा प्रचार - प्रसार भी जिसका उन्हे बरसो से इंतजार रहता है. समाजसेवा के क्षेत्र में ऐसे लोगो का नाम यदि बैतूल जिले के कारगिल चौक से सड़क पर लिखना शुरू किया जाये तो इधर मुलताई और उधर भौरा तक पहुंच जायेगा लेकिन उनका नाम लिखना खत्म नहीं होगा. छुटभैया से लेकर बड़े भैया तक समाजसेवा के क्षेत्र में बड़ा नाम और सम्मान को पा चुके लोगो के द्धारा जिले के अफसरो की निगाह में स्वंय को सबसे बड़ा समाज सेवक के रूप में स्थापित करना होता है ताकि उनकी दुकानो - प्रतिष्ठानो - मकानो में हो रही कालाबजारी - काले धंधे - काले कारनामो पर छापमार कार्यवाही न हो सके . जिले में कई तो ऐसे भी लोग है जो सिर्फ पत्रकार - पार्टी पदाधिकारी - धार्मिक संगठनो - सामाजिक संगठनो के स्वंय भू पदाधिकारी या संरक्षक बने बैठे है. समाजसेवा के बारे में कहा जाता है कि समाजसेवा एक प्रकार का मिशन है लेकिन बैतूल जिले के समाजसेवियो की हरकतो एवं उनके काले कारनामो को देख कर ऐसा नहीं लगता कि इनके लिए ऐसा कुछ है. दवाईयो की दुकानो से नकली दवा हो या फिर किसी अनाज के मालगोदाम से निकली मिलवाटी सामग्री हर किसी के पीछे उनका वह सामाजिक रूतबा होता है जिसकी वे हर बार बड़ी कीमत चुका कर समाज श्री का गले में कुत्ते की तरह पटट लगा कर घुमते है. आजकल समाजसेवा नाम मात्र कर रह गई है. दरअसल में समाजसेवा एक प्रकार की आड़ हो गई जिसके पर्दे में रह कर वह अपनी काली  करतूते कर सके. बैतूल जिले में दर्जनो महिलाओ की पेड़ और खुले आसमान के नीचे प्रसव पीड़ा हो गई लेकिन न तो कोई महिला सेवी आगे और न पीछे आई. ऐसे में चमक - धमक और चेहरे के चक्कर में कई लोग अपनी रोटी सेकती रहती है. जिले में महिला समाज सेवियो के भी किस्से किसी से छुपे नहीं है. कब किसकी और किसके साथ समाजसेवा करने में माहिर ऐसी महिलाये दर असल में नारी जाति के लिए भी कलंक है क्योकि उनके कारनामो को यदि छापा जाये तो पूरा समाचार पत्र भर जायेगा. समाजसेवा की आड़ में अनैतिकता का काला बाजार आज भी बैतूल जिले में धीरे - धीरे देह व्यापार की शक्ल लेता जा रहा है. सभी ऐसी नहीं है पर किसी ने कहा भी तो सही है कि ''एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है......!'' इस लेख के छपने के बाद उन समाजसेवियो की हेल्थ पर कोई फर्क नहीं पडऩे वाला जो कि नि:स्वार्थ समाजसेवा करते चले आ रहे है लेकिन उन लोगो की छाती पर काला नाग लोटने लग जायेगा जो कि समाज सेवा की आड़ में अनैतिकता का बाजार लगाये हुये है. मेरा इस लेख के पीछे किसी को बदनाम करने का अभिप्राय: नहीं है लेकिन जो पहले से ही बदनाम हो उसे बदनाम भी भला कैसे किया जा सकता है. समाज सेवा को एक मिशन के रूप में लेकर चलने वालो को एक बार फिर साधुवाद . 

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