Tuesday, December 14, 2010

Gujra Huwa Jamana

                     ''लौट कर नहीं आता गुजरा जमाना,अब किसी से मत कहना यही तराना  ! ''
                                                      रामकिशोर पंवार  ''रोंढ़ावाला ''
आज मैं जिस लेख को लिखने जा रहा हँू वह काफी चौकान्ने वाला और आश्चर्यचकित कर देने वाला है। इस लेख से वे सभी धारणायें तो गलत साबित होगी ही साथ ही वह फिल्मी  तराना भी गलत साबित होगा। इतना ही नहीं बल्कि लोगो के दिलो - दिमाग में पैठ कर गये उस कहावत - मुहवारे एवं बरसो से चले आ रहे तकिया कलाम को झुठा साबित कर देगा जो यह कहता है कि  '' गुजरा हुआ जमाना फिर लौट कर नहीं आता ......!'' इस लेख को लिखने के पहले मैं लखीमपुर जनपद के धौरहरा  निवासी दैनिक जागरण के पत्रकार भाई दीपेन्द्र मिश्रा को हार्दिक बधाई देना चाहता हँू जिसने बीते 14 दिसम्बर 2010 के दैनिक जागरण कानपुर के अंक में यह सनसनी खेज समाचार छापा कि वर्ष 2005 एवं 2011 के दिन - तीथी - समय सब एक समान है। कुछ भी नहीं बदला और लौट आया गुजरा हुआ जमाना.......! समय चक्र ने इस बात को झुठला दिया है। यकीन नही आता आपको तो अपने मोबाइल फोन या फिर कप्यूटर पर वर्ष 2005 और 2011 का कैलेंडर देखिए। पूरे साल की तारीखें और दिन एक जैसे है। जी हाँ! समय ने खुद को दोहराया है।वर्ष 2005 और 2011 की सभी तारीखें और दिन एक जैसेदिन न बदलने से त्योहारों में भी एकरूपता वर्ष 2005 में जनवरी की पहली तारीख को दिन शनिवार था। 2011 में भी ऐसा ही है। 31 जनवरी सोमवार को थी। 2011 में भी 31 जनवरी सोमवार को ही है। 2005 में वैलेंटाइन डे 14 फरवरी सोमवार को मनाया गया था। वर्ष 2011 में भी ऐसा ही होगा। 2005 में मार्च मंगलवार को शुरू हुआ था। 2011 में भी इसी दिन शुरू होगा। ये तारीखें और दिन तो बानगी भर हैं। अगर आप 2005 और 2011 का कैलेंडर लेकर बैठें तो आपको आश्चर्य होगा कि पूरे साल के कैलेंडर में सब कुछ एक ही है। वर्ष 2005 में गणतन्त्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गाँधी जयन्ती आदि राष्ट्रीय पर्व हमने जिस दिन मनाएँ थे, 2011 में भी उसी दिनद मनाएँ जाएँगे। ज्योतिष और खगोलशास्त्री इस संयोग के कारण अलग-अलग परिभाषित कर सकते हैं, लेकिन लोगों के लिए यह है तो अद्भुत। वर्ष 2005 और 2011 में और भी काफी समानताएँ हैं, जो कि अध्ययन का विषय हैं। हिन्दु कलैण्डर एवं पंचाग को छोड़ कर यदि अग्रेंजी कलैण्डर की बात करे तो वह हर तीथी एवं समय बिलकुल एक जैसा है कुछ भी नहीं बदला सिर्फ बदला है तो वर्ष जो कि 5 के बदले 11 हो गया। इस लेख के पीछे मेरी भावना कुछ इस प्रकार बयां होती है कि कोई जवान स्वंय को बच्चा न समझे और बुढा व्यक्ति स्वंय को जवान समझ कर उछल कुद न करे वरणा मेरी तरह आपकी भी टांग टूट सकती है। मेहरबानी करके मेरी कहीं बातो का अर्थ का अनर्थ न निकाले क्योकि मेरी टांग उछल कुद के चलते नहीं टूटी है और न किसी ने तोडऩे की जरूरत की है। संयोग ऐसा आया कि जो नहीं होना था वह हो गया लेकिन वर्ष 2005 का 2011 के साथ विचित्र एवं अद्भुत संयोग का संगम होना किसी से छुपने वाला नहीं। छै साल बाद ही गुजरा जमाना लौट कर आ गया लेकिन गाने को गाने वाली गायिका हमारे बीच वापस नहीं आई। लेख के पीछे जमाने के वापस लौटने की बाते कहीं जा रही है कहीं इसे आप अपने शरीर एवं दिल और दिमाग से न ले क्योकि दिल तो कभी बचपन जैसा नहीं हो सकता और न शरीर ..! ऐसे में गुजरे हुये लोगो के प्रति आशावान होना मूर्खता होगी लेकिन हमारे संस्कार एवं ग्रंथ इस बात को भी झुठलाते है क्योकि पहले हमारे देश में अब विदेशो में भी पुर्नजनम की बाते सुनने को मिल रही है। अकाल मौत और समय से पूर्व ही हुई मौत के बाद ऐसे कई किस्से सुनने एवं देखने को मिले है जो कि यह कहते है कि आत्मायें भी शरीर छोड़ कर वापस लौटती है। पहले बात तो हम गुजरे जमाने की कर ले नहीं तो बात भी लोगो को बेबात लगेगी। गुजरे जमाने के फंसाने को याद करने वाले छै साल पहले के दिन समय तारीख को लेकर बैठने के बजाय 2005 एवं 2011 का कलैण्डर लेकर जाये और फिर मिलान करे कि क्या सहीं और क्या गलत है.....!  गुजरे हुये जमाने को लेकर आपके सारे फंसाने यदि झुठे साबित हो जाते है तो फिर आपको आपकी प्रेमिका से लेकर श्रीमति भी यह नहीं कह सकती कि ''जो वादा किया ओ निभाना पडेगा ......!'' अब आप अपनी श्रीमति से लेकर जानू तक से कह सकते है कि  ''अरे भाई मैने तो 14 फरवरी 2011 को आने वाले वैलेटाइन डे को आपको हीरो का हार देने को कहा था तुम हो कि पिछले छै साल से मेरा जीना दुभर कर रही हो ......!''  इतना कहने के बाद भी श्रीमति या जानू नहीं माने तो कलैण्डर रख देना 2005 और 2011 के ऐसे में सेम टू सेम देख कर वह भी भौचक्की रह जायेगी। मेरा यह लेख आपको यह बताने के लिए है कि अग्रेंजी का यह वाक्य  ''सेम टू सेम .!''  यूं ही नहीं बना कुछ तो सेम टू सेम होगा ....! आज के इस अफसाने एवं फसाने के पीछे मैं बीते छै सालो को यू टर्न करके देखना चाहता हँू कि बीते छै साल पहले मैंने क्या किया और क्या नहीं कर पाया.....? हो सकता है कि गुजरा हुआ जमाना सिर्फ मेरी अधुरी अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए ही आया हो और ऐसे में मैं या आप समय के साथ नहीं चले तो फिर इंतजार करना होगा गुजरे हुये जमाने का ...! बीते हुये दिनो को कोसने वालो को अब आप करारा जवाब दे सकते है कि  ''काहे को बीते हुये जमाने को कोस रहे हो लो एक बार फिर बीता हुआ जमाना आपके पास लौट कर आ गया है......!  मैं आज 16 दिन बाद आने वाले गुजरे जमाने को लेकर अति उत्साही हँू क्योकि हो सकता कि आने वाले साल मेरे लिए कुछ अच्छी खबर लेकर आये क्योकि  वर्ष 2005 की अधुरी अभिलाषायें इस आने वाले साल में पूरी हो सकती है। आने वाला वर्ष सभी को मंगलमय एवं शुभकारी हो इन्ही अपेक्षाओं के साथ मां सूर्यपुत्री ताप्ती आप सभी का कल्याण करे।

Sunday, December 12, 2010

Sher Nahi Hai To Kaya Huwa

 शेर नहीं है तो क्या हुआ उसकी खाल और मुछ के बाल तो है ......!
                    लेख -  रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ावाला ''
सतपुड़ा के घने जंगल ऊँघते अनमने जंगल , इन वनो के खूब भीतर चा मुर्गे चार तीतर .....! उक्त कविता सतपुड़ाचंल के जंगलो की महिमा को मंडित करती थी लेकिन अब उक्त कविता इन जंगलो के लिए मजाक साबित होगी क्योकि इन जंगलो के भीतर अब तो चार मुर्गे और चार तीतर का मिल जाना ही एक बहँुत बड़ी चमत्कारिक घटना होगी. दिन प्रतिदिन घटते और कटते जा रहे जंगलो और मरते जा रहे जंगली जानवरो के चलते सतपुडा़चंल के हाल के बेहाल हो गए है. बैतूल के जंगलो के शेरो का शिकार करने के लिए देशी - विदेशी शिकार आया करते थे. शिकारियो के लगातार शिकार के चलते अब बैतूल के जंगलो में शेर को ढुंढने के चक्कर में कहीं आप ढेर न हो जाये तो कहना....! . जिले के घटते जंगल और काक्रिंट के बढ़ते जंगलो के चलते अब शेर जंगलो में नहीं बल्कि बैतूल के सम्पन्न घरानो की शान और पहचान बन गये है. बैतूल के जंगलो में यदि शेर न मिले तो कोई बात नहीं आपको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं अपने ही शहर के नवल जयसवाल का घर का पता पुछते उनके घर चले जाना आपको शेर की खाल मिल जायेगी. अब रही बात शेर की मुछो के बालो की बात तो अब आपको क्या बताये शेर की मुछ के बाल तो है भी ऐसे आदमी के पास जिसकी अपनी ही मुछ के बाल नहीं है...?  आप से इसे मजाक में मत लीजिए हम तो वहीं बकते और लिखते है जो कि जिला प्रशासन का रिकार्ड कहता है. सतपुड़ाचंल के जंगलो में वन्यप्राणियो का बेरहमी से हो रहे शिकार और उनके बाल और खाल का अंतराष्टï्रीय बाजार में काले व्यापार के कारण सतपुड़ांचल के दिन - प्रतिदिन बिरले होते जा रहे जंगलो में राज करने वाला शेर आज अपने इलाके में सुरक्षित नहीं है . सम्पन्न घरो के डाइंग रूम की शोभा बनते जा रहे वन्यप्राणियों की खाल और बाल ने उन्हे आज कहीं का नहीं छोड़ा है .हाल ही में  प्रदेश की भाजपा सरकार ने अपने सबंधित विभाग से प्रदेश के जंगलो में वन्यप्राणियो की गणना तो करवा ली पर वह इन पंक्तियो के लिखे जाने तक उनकी मौजूदगी को सही ढंग से प्रमाणित नहीं करवा सकी है.
        कभी जंगल में राज करने वाले जंगल के राजे के वो बाजे बजे है कि उसे अपनी नानी याद आ गई होगी . मौजूदा परिस्थिति में तथाकथित जंगल का राजा शेर आज अपने इलाके में सुरक्षित नहीं है . सम्पन्न लोगो के डाइंग रूम की शोभा बनते जा रही शेर के खाल और उसके बाल तथा नाखुन ने उसे आज कहीं का नहीं छोड़ा है . अकेले मध्यप्रदेश में बीते बारह सालों में शेर के शिकार की सैकड़ो घटनाये घट जाने के बाद भी शेर की जान - माल की कागजी सुरक्षा में लगा टाइगर सेल ही शक के दायरे में आ गया है . मध्यप्रदेश की पूर्व दिग्गी राजा की सरकार के कार्यकाल में जंगल के राजा शेर के शिकार की कई ऐसी घटनाये इस तथ्य को बयाँ करती है कि राज्य में जंगल का राजा अपने आप को शिकारियों से ज्यादा उसके रखवालों से ही असुरक्षित समझ रहा है . इसी तरह पुरे हिन्दुस्तान की हालत भी कम चिंताजनक नहीं है. हमारे देश में शेरो के शिकार की बढ़ती वारदातों के चलते प्रकृति पर दूषित पर्यावरण की मार और जंगल माफियाओं के राज के चलते जहां एक ओर धीरे-धीरे भारत भू-खण्ड में जंगलो का प्रतिशत घटता जा रहा है वहीं पेड़-पौधों के कम होने से उनके बीच निवास करने वाले वन्य जीव-जंतुओं की संख्या में भी भारी कमी आने लगी है. जंगली शेर, हाथी, गैंडा, तेंदुए तो अब कागजी किस्से कहानियाँ की शक्ल लेने लगे है. भारत ही नहीं अपितु सारी दुनिया में इनकी आबादी लगातार घट रही है. बैतूूूल जिला वन्य प्राणी संरक्षण समिति के संयोजक कहते है कि हर जगह जंगली जानवरो के प्राकृतिक आवास माने जाने वाले वनो के दिन प्रतिदिन कटने से इनमें असुरक्षा की भावना जागी है. असुरक्षित जंगली जानवर हिसंक होते जा रहे है. जंगलों के सिकुडऩे के साथ-साथ तेंदुओं एवं शेरों का सामान्य भोजन पहाड़ी बकरियां, जंगली सूअर और जंगली उल्लू भी खत्म हो रहे है. इसलिए इनके पास खाने को कुछ नहीं है और उन्होंने अपना मुंह जंगल से शहर एवं गांवों की ओर कर दिया है. इसी का परिणाम है कि यह जानवर आज नरभक्षी हो चले है. आज के दौर में जंगल माफियाओं और शिकारियों के बढ़ते आतंक से जहां शेर और बाघ सहित अन्य जंगली जानवर तेजी से लुप्त होते रहे है.विश्व के जंगल के राजा के नाम से विख्यात 'दि रॉयल टाइगर'' अब एक भीगी बिल्ली की तरह हो गया है. अब जंगल के इस बेताज बादशाह को अपनी जान के लाले पड़े है. मध्यप्रदेश के सतुपड़ा घने जंगलों में जंगल माफिया ने अपनी पैसे कमाने की भूख के लिए शेर, बाघ बल्कि हिरण, चीतल, नीलगाय और मोर तक को नहीं बख्शा है. वन्य प्राणियो के इन खूनी सौदागरों ने इनके माँस ,चमड़ी, हड्डिïयों, नाखून सहित शरीर के कई अंगों का लम्बा चौड़ा कालाबाजार फैला रखा है .इस गैरकानूनी बाजार की नाक में नकेलडालने की आज किसी में हिम्मत नहीं है क्योकि इस बाजार में दुकान लगाने वालों को अफसरशाही देश की भ्रष्टïराजनीति ने संरक्षण दे रखा है. आज इन लोगो के दम पर वन्य जीवो के बाल और खाल का कारोबार अब अन्तरराष्टï्रीय स्तर पर फैल चुका है .
                 टास्क फोर्स के अनुसार संसार में शेरो की आबादी घटकर 3,000 के लगभग रह गई है, जिनमे से तीन उप-प्रजातियां तो बिल्कुल लुप्त हो चुकी है और साइबेरियन शेर उनमे से है जिन पर सबसे अधिक खतरा मंडरा रहा है. शेरो के शिकार लोगो की काम कुंठा भी कुछ हद तक जवाबदेह है. संभोग क्रिया को बढ़ाने के चक्कर और खोई हुई ताकत को पाने के चक्कर में शेर ढेर होते चले जा रहे है. अपनी जवानी के लिए दुसरे का जीवन ही दांव पर लगाने वाले इंसान ने उस शेर को भिगी बिल्ली बना दिया है जिसकी दहाड़ से उसकी पेंट गिली और पिली हो जाया करती थी. दरअसल शेर के शिकारियों की नज़र अब इंसान की खोई मर्दागनी के चक्कर में गैंडो और भालुओं की को भी नहीं छोड़ रही है. आजकल मेड इन चायना के चक्कर में चायनीज रतिवद्र्धक दवाएं भी कहीं न कहीं इन्ही जानवरो को मार कर ही बनवाई जाती है. हालाकि चीन में बीते कई जमाने से रतिवद्र्धक दवाईयां बनाई जाती रही है.
         एक सर्वेक्षण के अनुसार इस समय केवल 300 साइबेरियन शेर धरती पर विद्यमान है, जबकि हाल में किए गए एक अध्ययन में यह संख्या 425 और 475 के बीच बताई गई है. संरक्षको की दृष्टिï में यदि इनमे से सबसे ऊंची संख्या भी सही है तब भी चिंता बहुत बड़ी है और इनकी रक्षा के लिए बहुत भरोसेमंद और मजबूत उपायों की आवश्यकता है. अगर समय रहते जंगल के राजा शेर के संरक्षण की दिशा में ठोस पहल नही की गई तो ये भी डायनासोर की भांति पृथ्वी से लुप्त हो जाएंगे और हमें भविष्य में इनके जीवाश्मों से काम चलाना पड़ेगा आज भले ही सतपुड़ाचंल के जंगलो मेेंं नीचे दिये गए वन्यप्राणियो के पंजे के निशान तक नही मिलेगें पर अकेले बैतूल जिले में इन पंक्तियो के लिखे जाने तक 37 आदमियो के घरो में जिनके नाम इस प्रकार है उन लोगो के घरो के ड्राइंग रूमो में सौ से भी अधिक निम्रांिकत मृत जंगली जानवरों के शरीर के अंगो की उपस्थिति  शोभामान है. इन सभी का बकायदा पंजीयन हुआ है. उक्त सभी जंगली जानवरो के अंग तो नम्बर वन में है लेकिन नम्बर दो जो है उके लिए आपके पास कलेजा चाहिये क्योकि कहीं ऐसा न हो कि देखने जाये और कुछ आपके साथ हो जाये कुछ .......
क्र.        नाम            स्थान        वन्यप्राणी का प्रकार व संख्या
1.    नवल जैसवाल        बैतूल        शेर की खाल -1
2.    प्रमोद दीक्षित        बैतूल        चीते का सिर-1, सांभर सींग-2
3.    शिवकिशोर मेहतो    शाहपुर        तेंदुआ की खाल-1, हिरण सिर-2
4.    रमेश मेहतो        शाहपुर        काले हिरण की खाल -4
5.    अमित मेहतो        शाहपुर        हिरण सिंग सहित-3
6.    सुंदरलाल हिंगवे    बैतूल        जंगली भैंसा-2, चिंकारा-2,
                                 सांभर-2, हिरण-2
7.    महेशचंद्र शर्मा        बैतूल        तेंदुआ चमड़ा-1, चौसिंघा-1,
                                 चीतलसींग-1, सांभर-1
8.    सुरेशचंद्र शर्मा        बैतूल        चिंकारा सींग-1, चीतल चमड़ा-1
9.    यशपाल मालवीय    बैतूल        सांभर सींग-4
1०    श्यामराव तहकीत    बैतूल        चीतल-1
11    राजेन्द्र कुमार लव्हाटे    बैतूल        सांभर सींग-3
12    रामकुमार वर्मा        बैतूल        सांभर सींग-1
13    अरूण कुमार वर्मा    बैतूल        सांभर-3
14    प्रहलाद सोनी        बैतूल        सांभर-1
15    नारायण साबले        बैतूल        हिरण-1
16    मनीष नागले        बैतूल        सांभर सींग-1
17    कृष्णकांत वमार्        बैतूल        सांभर सींग-1
18    मो. करीम खान        बैतूल        सांभर सींग-1
19    विलास जोशी        बैतूल        सांभर सींग-5, हिरण सींग
2०    सुश्री उषा द्विवेदी    बैतूल        सांभर सींग-9,सांभर चमड़ा-7
21    रामप्रसाद कटारे    बैतूल        सांभर सींग-5
22    पुष्पराज यदु        बैतूल        सांभर सींग-3
23    आशीष यदु        बैतूल        सांभर सींग-3
24    अब्दुल कदीर        बैतूल        सांभर सींग-1
25    अब्दुल अमीन        बैतूल        चीतल सींग-3
26    सीआर चढ़ोकार    बैतूल        सांभर सींग-1
27    हेमंत पात्रीकर        बैतूल        हिरण खाल-1
28    परमजीत सलूजा    बैतूल        सांभर सींग-1
29    संतोष खासकलम    बैतूल        सांभर सींग-1
3०    सुजाद हुसैन रिजवी    बैतूल        सांभर सींग-1
31    नगेन्द्रसिंह ठाकुर    बैतूल        सांभर सींग-2
32    सुलाउद्ïदीन खान    बैतूल        सांभर सींग-2
33    आरएम दुबे        बैतूल बाजार    सांभर सींग-2
34    प्रवीण भावसार        बैतूल        सांभर सींग-1
35    मुश्ताक अहमद        बैतूल        सांभर सींग-2
36    अनिल वर्मा        बैतूल        सांभर सींग-1
37    कौशिक डागा        बैतूल        सांभर सींग-3
इति,

Bhaiya Jee Mar Gaye Ho

''भैया जी मर गये हो या हो जिंदा कुछ तो संकेत दीजिए ......! ''
    लेख -  रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ावाला ''
मां की महिमा शब्दो में बयां नहीं की जा सकती. मां के प्रकार कई है. जगत मां से लेकर धाई मां तक के बारे में हम पुराणो एवं इतिहास के पन्नो तक में किस्से कहानियां पढ़ते चले आ रहे है. जननी से बड़ी होती है जीवन दायनी मां क्योकि उसका त्याग उस मां के कोख के 9 माह के दर्द से ज्यादा होता है. जब बात श्रीकृष्ण के सामने आई कि ''वह आखिर लाल किसका है.........! यशोदा का या फिर देवकी का ......!'' जग के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु ने उक्त सवाल का ऐसा जवाब प्रस्तुत किया कि मां यशोदा को यह पीड़ा ही नहीं हुई कि श्री कृष्ण ने उसकी कोख से जन्म ही नहीं लिया. श्री कृष्ण ने व्याकुल यशोदा को कहा कि ''मां लोग कुछ भी कहे लेकिन सारा संसार मुझे यशोदा तथा नंदबाबा के नाम से नंदलाला के नाम से ही जाना - पहचाना जायेगा....!''   भगवान श्री कृष्ण कहते है कि ''हे मां जननी से बड़ी होती है पालनहारी , इसलिए किसी भी प्रकार का विलाप न कर मां ..... तेरा दर्जा कोई दुसरा नहीं ले पायेगा....!'' आज भी इस संसार में ऐसे कई उदाहरण बताये जा सकते है जिसमें कोख जननी से महान कहलाई है उसकी पालनहारी ...... चाहे वह बात पन्ना धाई मां की हो या फिर रानी लक्ष्मी बाई की जिसने त्याग और ममता की ऐसी मिसाल पेश की है कि आज भी बरसो बीत जाने के बाद लोग उनके नाम के सामने नतमस्तक है. बैतूल जिले में भी संसाद की तरह नदियो को मां की तरह पूजा जाता रहा है. स्वच्छ - निर्मल - पावन जल का भण्डार देने वाली नदियां हमारी संस्कृति का मुख्य अंग है.विश्व की कई संस्कृति एवं सभ्यता नदियो के किनारे जन्मी और उसी के किनारे समाप्त हो गई. जब संसार की उस मालिक ने रचना की थी तब बात चली होगी जल - वायु की ऐसे में नदियो को भी पवन के साथ धरती और आकाश में अवतरीत किया होगा. ताप्ती के बारे में पुराणो में तो यही लिखा है कि भगवान सूर्य नारायण ने स्वंय के ताप से लोगो को मुक्ति दिलाने के लिए सबसे पहले ताप्ती को ही अवतरीत किया था इसलिए ताप्ती आदिगंगा भी कहलाई जाती है. आज इस नदी के धरती पर अवतरण के लाखो - करोड़ो साल बीत चुके है. इस नदी के किनारे कितने ही शहर - गांव और बस्ती बसी और मिट गई और नहीं मिटा तो सिर्फ इसका अस्तीत्व जो आज भी कायम है. सूर्य पुत्री कहलाने वाले मां ताप्ती को लेकर इस जिले के हर व्यक्ति में वही श्रद्धा के भाव है जो गंगा और यमुना तथा सरस्वती के प्रति है. कुछ महत्वाकांक्षी लोगो और लालची स्वभाव के पंडितो तथा महापात्रो ने गंगा को    महिमा मंडित किया जो कोसो दूर है. गंगा में पिण्डदान के बहाने लोगो को ठगने के गोरखधंधे तथा ताप्ती के महत्व को कम आकने के चलते इस जिले की वह नदी आज अपनो के बीच बेगानी हो गई जिसमें मात्र मृत आत्मा को तीन दिन में मुक्ति मिल जाती है. गंगा में प्रतिदिन हजारो अस्थियां लेकर पहुंचते परिजन सोचते होगें कि उसके द्धारा की गई अस्थी विसर्जन से उसके परिजन को मुक्ति मिल गई लेकिन लाखो - करोड़ो की संख्या में अस्थियो का दलदल बनी गंगा में डुबकी लगाने के बाद आपकी अंजुली में यदि किसी की अस्थी न आ जाये तो कहना...... यह कडुवा सच है लेकिन लोग ताप्ती को छोड़ नर्मदा को लांध कर अपने परिजनो की अस्थियां गंगा में लाकर बहा जाते है. साल में वहीं गंगा एक बार पूरी अस्थियों को लेकर मां नर्मदा के पास आकर उन्हे सौप कर उनकी मुक्ति की प्रार्थना करती है. इन सबसे हट कर मां ताप्ती तो किसी भी मृत देह के अंतिम संस्कार के तीसरे दिन ही उसे मुक्ति का सीधा रास्ता दिखा देती है.
                मां  ताप्ती की महिमा के बाद मैं अपने मूल विषय पर आता हँू . लोग कहते है कि ''इसंान की आत्मा जिंदा होती है .......! जिनकी आत्मा जिंदा होती है वही व्यक्ति पुण्य के काम करता है.....!'' मुझे पिछले कई दिनो से ऐसा क्यूं लग रहा है कि ''हमारे जिले के भैया जी की आत्मा भी मर चुकी है.......!'' यदि हमारे भैया जी की आत्मा आज जिंदा होती तो क्या वे इस बात का बर्दास्त कर पाते कि ''उनके सरकार में रहते उनके ही जिले की पुण्य सलिला मां ताप्ती का नाम और महिमा का गान राज्य सरकार ने क्यों नहीं किया....!'' भैया जी तो इस बारे में आज तक किसी से कुछ बोले तक ही नहीं क्योकि आपको अंदर की बात शायद पता नहीं कि ''हमारे भैया जी को पता ही नहीं कि कोई गान - वान भी बना है या लिखा गया है.....!'' यह बात अलग है कि हमारे भैया जी किसी के फटे - पुराने में अपनी टांग नहीं डालते जिसके पीछे अंदर की बात कुछ और भी हो सकती है. ऐसा नहीं कि हमारे भैया जी बैतूल के ही है हमारे भैया जी तो हर उस गांव में है जिसके वे चौधरी बने हुये है. भैया जी हमारे हो या तुम्हारे लेकिन माई तो सबकी है न ऐसे में भी यदि भैया जी की आत्मा ही मर जाये तो फिर आप और हम आखिर क्या कर सकते .....! कुछ उन्नीस - बीस हो गया तो भैया जी को जिंदा करने में साल लग जायेगें तब तक को भैया जी के साले साहब वो धुलाई करेगें कि वाशिंग मशीन भी नहीं कर पायेगी....! अब इससे बड़ी शर्मनाक बात और सामने आई है. प्रदेश की सरकार पड़ौसी महाराष्ट्र सरकार के साथ मिल कर ताप्ती विकास प्राधिकरण बनाने जा रही है. अब ताप्ती विकास प्राधिकरण का मुख्यालय रहेगा वह बुराहनपुर शहर जहां से स्कूली शिक्षा मंत्री श्रीमति अर्चना चिटनीस प्रतिनिधित्व करती है. ताप्ती विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष पद से लेकर सारा लाभांश मैडम चिटनीस और पड़ौसी महाराष्ट्र के लोगो को मिलेगा. काश यदि हमारे भैया जी की आत्मा जिंदा होती तो हम गांव - गांव से भैया जी को शहर और जिला मुख्यालय से दिल्ली तक भिजवा कर इस बात का शोर मचाते कि ''हम अपनी मां के आंचल का दुध किसी और को इसलिए नहीं पीने देगें क्योकि हमारे कंठ अभी प्यासे है.....!'' हम भुख और प्यास से व्याकुल रहना नही चाहते इसलिए हम पहले शांती का पाठ पढाना चाहते है. पूज्य बापू जी और महान संत गुरू नानक देव भी मां ताप्ती के तट पर वही शांती और सदभावना का संदेश दे चुके है. इन सबको हमारी कमजोरी न समझे क्योकि मां ताप्ती के पावन तट पर गोरे अग्रेंजो की नाक में नकेल डालने वाले महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तात्या टोपे भी आ चुके है. हम चुप है तो सिर्फ इस बात के लिए कि हमारे गांव से लेकर शहर और जिले के चौधरी बने भैया जी की एक बार मरी आत्मा में जान आ जाये. लोग रावण की ममी को आज भी श्री लंका की उस अनजान पहाड़ी पर छुपा कर रखे है कि उसमें किसी भी तरह से जान आ जाये लेकिन अभी तो हमारे भैया जी ममी नहीं बने है. इस लेख के पीछे छिपी भावना के दर्द को भैया जी यदि समझ कर अपनी आत्मा को स्वंय के आत्मबल पर यदि जिंदा कर लेते है तो इस जिले का भलां हो सकता है. वैसे तो भैया की आत्मा को जगाने के दस तरीके है लेकिन वे सब ओछे एवं घटिया दर्जे के है जो हमारी संस्कृति के विपरीत है. हम तो बस यही चाहते है कि ''भैया जी की आत्मा जिंदा हो जाये ताकि उनके बहाने हम अपनी मां ताप्ती को वह मान सम्मान दिलवा सके जो आज डाकुओ की शरण स्थली चम्बल को मिल रहा है....!'' भैया जी को आखिर में चलते - चलते एक ही सुझाव है कि वे राम तेरी गंगा मैली का वह गाना जरूर याद रखे जिसमें यह कहा गया है कि ''देर न हो जाये कहीं देर न हो जाये ......!

Samaj Sewa Ka Dard

 ''सहीं समाजसेवा का दर्द......!''
लेख:- रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ावाला ''
मेरे मन में कई दिनो से यह ख्याल बार - बार आता है कि समाजसेवा का दर्द - पीड़ा केवल चंद लोगो को ही क्यों होती है. जब यह बात मेरे एक समाजसेवी मित्र से पुछी तो वह कहने लगा कि ''बांझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा....!'' मुझे उसकी बात पर गुस्सा भी आया लेकिन मैं उस समय चुप्पी साध कर मौके की तलाश में करने लगा. बैतूल जिले में भी समाजसेवा एक फैशन टीवी की तरह लोकप्रिय हो गया है. हर कोई को रह - रह कर समाजसेवा का दौरा पड़ जाता है. कई बार तो इस प्रकार के दौरे दिल के दौरे और मिर्गी के दौरे से भी खतरनाक दिखाई पड़ते है. जिसकी घर - परिवार में दो कौड़ी की इज्जत नहीं होती है ऐसे में ऐसे समाज में अपना रूतबा बए़ाने के लिए समाजसेवा का पाखण्ड करने लग जाते है. हमारे शहर और आपके शहर में ऐसे पाखंडियो की कमी नहीं होगी. समाजसेवा का सुख और उसके पीछे छुपा स्वार्थ कई बार ऐसे लोगो की जब पोल खोलता है तब ऐसे लोग किसी कों मुँह दिखाने के लायक नहीं रहते है. मुम्बई पुलिस ने बैतूल के एक समाजसेवी को जब अपनी बेटी से कम उम्र की लड़की के साथ मुम्बई की एक फाइव स्ट्रार होटल में दबोचा तो इस बात की खबर उड़ती हुई बैतूल पहुंची तो समाजसेवी को लोगो से कुछ दिनो तक अपना मुंह छुपाना पड़ा. बैतूल जिले में समाजसेवा और स्वंयसेवी संगठनो की बाढ़ सी आ गई है. हर किसी पर समाजसेवा का भूत सवार है और वह भी ऐसा की गुरू साहेब महाराज की समाधी पर लेने जाने के बाद भी नहीं उतरेगा. ऐसे लोगो के द्धारा हास्पीटल और चौक चौराहो पर समाजसेवा का नाटक किया जाता है. आज भी जिले में हजारो लोग सेवा का तरसते है लेकिन समाजसेवी इन्हे नज़र नहीं आते है. अपने घरो और दुकानो पर काम करने वाले नौकरो को सही पगार न देने वाले समाजसेवी अकसर मंहगे क्लबो और संगठनो के कत्र्ता - धत्र्ता बन कर अपना उल्लू सीधा करने में लग जाते है. जिले में समाजसेवा के रूप में लायंय क्लब जैसे संगठनो का नाम आता है जिनकी एक पार्टी में एक लाख रूपये तक खर्च हो जाता है लेकिन ऐसे लोग किसी गरीब और मजबुर व्यक्ति को चार आने की मदद तक नहीं करते है. जब बैतूल जिले के जंगलो में गीदड़ - सियार तक नहीं बचे ऐसे में कांक्रिट के जंगलो में शेर की खाल ओढ़े सिार स्वंय को लायन कहलाना पसंद करते है. समाजसेवा नाम बऔर पहचान के लिए नहीं होनी चाहिये लेकिन कोई किसी को समझाये भी कैसे क्योकि अकसर लोग कहा करते है कि ''अंधो के सामने रोओ और अपने नयन खोओ .....!'' जिले में समाजसेवा का विकृत स्वरूप देखने को मिलता रहता है. बैतूल जिला मुख्य चिकित्सालय में बीते दिनो एक गरीब परिवार को खून की तलाश में दर - दर का भिखारी तक बनना पड़ा लेकिन उसकी मदद को कोई भी समाजसेवी नहीं आया. बैतूल जिले में उन समाजसेवियो को जिन्हे समाचार पत्रो एवं न्यूज चैनलो पर स्वंय के थोबड़े को दिखाने की बीमारी रहती है ऐसे लोगो को बेनकाब करने का सहीं समय आ चुका है. बैतूल जिले में इस समय दर्जनो समाजसेवियो को जो कि देशी - विदेशी चंदा और सरकारी सहायता अपने स्वंयसेवी संगठनो के लिए प्राप्त होती है ऐसे लोगो की भी कार्य प्रणाली की समय - समय पर निगरानी करते रहनी चाहिये. समाजसेवा की आड़ में समाज और अपनो से बहिष्कृत लोग अपने हराम केचंद पैसो के बल पर किसी भी संस्था में प्रवेश पाकर उसके कत्र्ता - धत्र्ता बन जाते है. ऐसे लोगो को अकसर एक दुसरे समाजसेवा के क्षेत्र में विशेष कार्य के लिए सम्मानित एवं पुरूस्कृत करते रहते है. अकसर समाजसेवी का मान - सम्मान लोगो को मिलता नहीं बल्कि वे उसे चंद रूपयो में खरीदते है. बैतूल जिले में एक भी समाजसेवी ऐसा नहीं है जिसे किसी गरीब या मजबुर व्यक्ति द्धारा दुआ देकर सम्मानित किया गया हो. ऐसा सम्मान पाने वाले जिले में ढुंढे से नहीं मिलेगे. मेरा अपना अनुभव है कि बैतूल जैसे अभागे जिले में राष्ट्रपति से लेकर सरंपच तक से पुरूस्कृत लोगो की कमी नहीं है. जिले में ऐसे समाजसेवी एक या दो ही हो सकते है जिन्होने अपनी जमीन - जायजाद तक समाजसेवा के पागलपन के पीछे लुटा दी हो. घर की चवन्नी नहीं और रूपये का सम्मान पाने वाले जिले के कुछ तथाकथित समाज सेवक जिले में ऐसे स्वंय सेवी संगठन और समितियो को समय - समय पर रूपैया - पैसा देकर स्वंय को सबसे बड़ा समाजसेवी का मडल पा लेते है. जिले में ऐसे सामाजिक संगठन भी है जो अपनी जात - समाज की प्रतिभा को सम्मान देने के बजाय दुसरी जात और समाज को ही सम्मान देते है. ऐसा करने से उन्हे दोहरा फायदा होता है. पहला तो यह कि सारे कार्यक्रम का खर्चा मिल जाता है और दुसरा प्रचार - प्रसार भी जिसका उन्हे बरसो से इंतजार रहता है. समाजसेवा के क्षेत्र में ऐसे लोगो का नाम यदि बैतूल जिले के कारगिल चौक से सड़क पर लिखना शुरू किया जाये तो इधर मुलताई और उधर भौरा तक पहुंच जायेगा लेकिन उनका नाम लिखना खत्म नहीं होगा. छुटभैया से लेकर बड़े भैया तक समाजसेवा के क्षेत्र में बड़ा नाम और सम्मान को पा चुके लोगो के द्धारा जिले के अफसरो की निगाह में स्वंय को सबसे बड़ा समाज सेवक के रूप में स्थापित करना होता है ताकि उनकी दुकानो - प्रतिष्ठानो - मकानो में हो रही कालाबजारी - काले धंधे - काले कारनामो पर छापमार कार्यवाही न हो सके . जिले में कई तो ऐसे भी लोग है जो सिर्फ पत्रकार - पार्टी पदाधिकारी - धार्मिक संगठनो - सामाजिक संगठनो के स्वंय भू पदाधिकारी या संरक्षक बने बैठे है. समाजसेवा के बारे में कहा जाता है कि समाजसेवा एक प्रकार का मिशन है लेकिन बैतूल जिले के समाजसेवियो की हरकतो एवं उनके काले कारनामो को देख कर ऐसा नहीं लगता कि इनके लिए ऐसा कुछ है. दवाईयो की दुकानो से नकली दवा हो या फिर किसी अनाज के मालगोदाम से निकली मिलवाटी सामग्री हर किसी के पीछे उनका वह सामाजिक रूतबा होता है जिसकी वे हर बार बड़ी कीमत चुका कर समाज श्री का गले में कुत्ते की तरह पटट लगा कर घुमते है. आजकल समाजसेवा नाम मात्र कर रह गई है. दरअसल में समाजसेवा एक प्रकार की आड़ हो गई जिसके पर्दे में रह कर वह अपनी काली  करतूते कर सके. बैतूल जिले में दर्जनो महिलाओ की पेड़ और खुले आसमान के नीचे प्रसव पीड़ा हो गई लेकिन न तो कोई महिला सेवी आगे और न पीछे आई. ऐसे में चमक - धमक और चेहरे के चक्कर में कई लोग अपनी रोटी सेकती रहती है. जिले में महिला समाज सेवियो के भी किस्से किसी से छुपे नहीं है. कब किसकी और किसके साथ समाजसेवा करने में माहिर ऐसी महिलाये दर असल में नारी जाति के लिए भी कलंक है क्योकि उनके कारनामो को यदि छापा जाये तो पूरा समाचार पत्र भर जायेगा. समाजसेवा की आड़ में अनैतिकता का काला बाजार आज भी बैतूल जिले में धीरे - धीरे देह व्यापार की शक्ल लेता जा रहा है. सभी ऐसी नहीं है पर किसी ने कहा भी तो सही है कि ''एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है......!'' इस लेख के छपने के बाद उन समाजसेवियो की हेल्थ पर कोई फर्क नहीं पडऩे वाला जो कि नि:स्वार्थ समाजसेवा करते चले आ रहे है लेकिन उन लोगो की छाती पर काला नाग लोटने लग जायेगा जो कि समाज सेवा की आड़ में अनैतिकता का बाजार लगाये हुये है. मेरा इस लेख के पीछे किसी को बदनाम करने का अभिप्राय: नहीं है लेकिन जो पहले से ही बदनाम हो उसे बदनाम भी भला कैसे किया जा सकता है. समाज सेवा को एक मिशन के रूप में लेकर चलने वालो को एक बार फिर साधुवाद . 

Chabi Tujhe Salam

''छबि तुझे सलाम  ......!''
लेख:- रामकिशोर पंवार  ''रोंढ़ावाला ''
 ''जननी से बड़ी होती है जन्मभूमि '' उसका कर्ज अदा करना सबसे पहला धर्म है. लोगो ने कहा भी है कि ऋण कई प्रकार के होते है. जिसमें एक ऋण उस भूमि का भी होता है जहां पर आपका जन्म हुआ है. कई बार ग्रामीण आम बोलचाल की भाषा में लोग किसी को कहीं जाने के लिए बाध्य करते है और वह जब जाने से मना कर देता है तो लोग उसे ताना मारते है  ''क्यो यहां पर तेरा नरा गड़ा है क्या..! '' नरा का अभी प्राय: उस नली से होता है जो गर्भ में शीशु को प्राण वायु से लेकर आहार तक पहुंचाती है. बच्चे का जब जन्म होता है तब दाई या गांव की बड़ी - बर्जुग महिला उस नली को तेज धारधार चाकु - छुरी - हथियार से काट कर उसे घर के ही किसी कोने में गाड़ देती है . ऐसा पहले होता था लेकिन अब तो नर्स और मंहगे हास्पीटलो के कारण गांवो के बच्चो के भी भी वह नली कहां गायब हो जाती है किसी को पता तक नहीं है. आज यही कारण है कि इस नई पौध का अपने गांव या जन्मस्थान से मोह नहीं होता क्योकि उनकी जन्मभूमि तो हास्पीटल का प्रसुति जननी कक्ष होता है इसलिए उसके मन - दिल - दिमाग में अपनी जन्मभूमि के प्रति वह प्यार या अपनत्वपन दिखाई नहीं देता जो मुझे राजस्थान के उस छोटे से गांव सोढ़ा की ग्राम पंचायत सरपंच सुश्री छबि राजावत के दिलोदिमाग में दिखाई दिया. राजस्थान जहां पर लड़की का पैदा होना अभिश्राप माना जाता है. जहां पर पैदा होते ही लड़कियो को मार दिया जाता है. उस राजस्थान के एक छोटे से गांव में जन्मी लड़की ने एम बी ए की पढ़ाई करने के बाद देश - विदेश की हाई प्रोफाईल नौकरी - जाब को छोड़ कर गांव की सरपंची करने का मन बना कर अपने गांव को लौटना रास आया तो ऐसी लड़की की जितनी तारीफ की जाये कम है. मेरा मन तो ए आर रहमान की तर्ज पर  ''छबि तुझे सलाम ......!'' कहने को उतावला हो रहा है. छबि की छबि को आंखो में देख कर नहीं लगता कि जींस टी शर्ट पहन कर घुडसवारी करने वाली इस शहरी लड़की का दिल अचानक कैसे पसीज गया और वह एसी - कुलर हाई प्रोफाइल जिदंगी को बाय - बाय करके गांव की रेतली मिटट्ी में आकर रम गई. छबि को देखने के बाद ऐसा लगा कि राजस्थान जिसके बारे में कहा जाता है कि  ''इस मिटट्ी का तिलक करना चाहिये , क्योकि यह मिटट्ी - रेत उस राजस्थान की है जहां पर शौर्य और वीरता का इतिहास भरा पड़ा है...'' शौर्य गाथा वह भी राजस्थान की सुनने के बाद तो मुर्दे में भी जान आ जाती है. ऐसे प्रदेश की छबि को बार - बार मन सलाम करना चाहता है. पूरे देश में जी न्यूज पर दिन भर छाई रही छबि  की स्पेशल स्टोरी हर न्यूज चैनल पर विश्व महिला दिवस पर दिखाई गई कि वह किस तरह एम बी ए की शिक्षा प्राप्त करने के बाद आई टी सिटी पुना को बाय - बाय करके अपने गांव को लौट आई. किसी फिल्मी तारीका या माडल से कम न दिखने वाली छबि जब जी न्यूज की महिला आरक्षण को लेकर बहस में हिस्सा लेकर अच्छे - अच्छे नेताओ की बोलती बंद करके उन्हे चैलेंज करती थी कि गांव की महिलाओ को भी आत्म सम्मान मिलता है यदि आपकी नीयत साफ हो .....? छबि सभी से कहती थी कि वे लोग मेरे गांव को आकर देखे और वहां की महिला पंचो से मिले और उनसे पुछे कि वे पहले और अब के समय कैसा महसुस कर रही है. ग्राम पंचायतो में आरक्षण के बाद आरक्षित पद पर सरपंच का चुनाव दो अन्य महिलाओं को हरा कर जीती छबि कहती है कि  ''इस गांव में कभी मेरे दादा सरपंच थे , आज मैं सरपंच बनी हूं .''  महिलाओ को आत्म सम्मान देने से ही आपकी नीयत का पता लगता है. छबि को देख कर एक बार फिर मुझे बेटी के न होने का दर्द होने लगा. काश मेरी भी बेटी होती , वह भले एम बी ए पास न होकर यदि बारह क्लास तक पास होने के बाद मेरे गांव की सरपंच बनती तो शायद मुझे ऐसा लगता कि मैने उसके बहाने अपनी जन्मभूमि का थोड़ा - बहुंत कर्ज अदा कर दिया. गांव की पेयजल समस्या हो या फिर गांव की सड़क हर जगह छबि के रूप में काम करती मेरी बेटी की कल्पना ने आज इस लेख की रचना ही कर डाली. समाज में मरी तरह सोचने वालो की कमी नहीं है पर क्या करे जहां वंश चलाने की बात आती है तो वे लोग बेटे की चाह को पाल लेते है. एक प्रकार से देखा जाये तो वंश बेटी भी चलाती है. आखिर छबि ने अपने दादा का बार - बार जिक्र करके उस राजावत वंश को भी तो एक नाम और पहचान दी है. जिसे कल तक राजस्थान की सोढ़ा ग्राम पंचायत के लोग ही जानते थे. मात्र 15 सौ की आबादी में 15 परिवारो के इस राजावत परिवार की इस छोरी ने वो काम कर डाला कि कई पीढ़ी उसे याद रखेगी. आज मेरी मृत अबभिलाषा ने एक बार फिर उस टीस को जिंदा करके मुझे रोने को मजबुर कर दिया कि मैं अपने जीवन में अपनी बेटी का कन्यादान नहीं कर पाऊंगा.....? बेटी की कमी उस व्यक्ति को ज्यादा होती है जिसकी अपनी कोई बेटी नहीं होती है. आज के समय मैं अपने ही अपने भाई समकक्ष मित्र एवं गुरू अजय कुमार वर्मा की किस्मत की सराहना करना चाहुंगा जिनकी बेटियो ने आई टी के क्षेत्र में बैतूल बाजार से लेकर विदेशो तक में जाकर अपने माता - पिता का नाम ऊंचा कर दिया. अजय भैया की बेटियो ने जो आज मुकाम हासिल किया उसके पीछे उसकी मम्मी का हाथ जरूर है क्योकि अपने जमाने की अग्रेंजी में एम ए शिक्षा प्राप्त हमारी इस भाभी ने अपने सपनो को अपनी बेटियो के साथ साकार कर लिया. आज के समय अजय भैया एवं भाभी दोनो को सलाम करने को मन करता है. वह इसलिए नहीं कि वे मेरे भैया - भाभी है वह इसलिए कि उन्होने ने मेरी उस नन्ही सी भतीजी मोना को सोना बना डाला. आज लाखो - करोड़ो की मालीक बनी मोना किसी सोने से कम नहीं है. उसने मां की शिक्षा और दिक्षा का पूरा फायदा उठाया और आज विदेश में अपने ही वर्मा वंश का नाम तो रोशन कर रही है. ऐसी बेटियो को बार - बार नमन - अभिनंदन और उनका चरण वंदन ...... आज पूरा देश महिला आरक्षण की बात को लेकर बहस और प्रतिष्ठा की लड़ाई को देख रहा है लेकिन कोई भी सही मायने में दुनिया की आधी आबादी की बर्बादी को नहीं रोक पा रहा है. महिला को आत्म सम्मान तभी मिलेगा जब हम उन्हे अपने बगल में बैठने का हक देगें. पूरे जीवन में शायद किसी भी महिला को शादी के बाद ऐसा दुसरा मौका बहुत कम ही मिलता है जब वह अपने पति याने पुरूष के बगल में बैठ पाती है. स्थिति तो यहां तक आज भी है गांवो में नहीं बल्कि शहरो में कि अपनी ही बेटी को लोग अपनी बगल में बैठने का अवसर तक नहीं देते. ऐसे में उसे समान अधिकार देने की बाते करना बेईमानी होगी. मैं बैतूल जैसे आदिवासी जिले के एक छोटे से गांव में रहता हँू लेकिन जब भी गांव आता - जाता रहता हँू तो मुझे बार - बार उस कर्जदार की दुत्कार सुनाई देती है जो मुझे लताड़ता है कि  ''तू अपनी जन्मभूमि का कर्ज कब अदा करेगा......!'' आज वास्तव में मेरे अपने गांव  की दशा और दिशा के लिए मैं भी कुछ हद तक जिम्मेदार हूं. मुझे शहरो का मोह छोड़ कर गांव की उस पगडंडी को पकडना चाहिये जो कि मेरा बरसो से इंतजार कर रही है. लोग गांव छोड़ कर जा रहे है पर मैं शहर छोड़ कर गांव नहीं जा पा रहा हँू. हालाकि मैं अकेला पैदल ही गांव के लिए निकलू तो दोपहर तक गांव पहुंच जाऊंगा लेकिन गांव में अपनी माता मैया और चम्पा के पेड़ के सिवाय मेरा अपना बचा ही क्या है. माता मैया और चम्पा का पेड़ भी पूरे गांव का है ऐसे में मैं सिर्फ यह कह सकता हँू कि  ''इस गांव में मेरा भी नरा गड़ा है इसलिए यह गांव मेरा भी है.....!'' चलते - चलते एक बार फिर मुझे और मेरे गांव को भी इस बात की तलाश रहेगी कि  ''काश मेरे गांव को भी कोई छबि मिल जाये ......!''

Ramudev Baba

''कोई तो मुझे रामूदेव बाबा बनाओं ......!''
लेख:- रामकिशोर पंवार  ''रोंढ़ा वाला''
मुझे अब पता लग रहा है कि बाबा बनने का कितना फायदा होता है. टी वी चैनलो पर  बाबा के प्रवचन - भजन - कीर्तन - दर्शन के फायदे इतने होते कि बाबा लोगो की चांदी हो जाती है. कल का चोर - उच्चका - डाकु - लूटेरा - बलात्कारी - दुराचारी अपनी पति द्धारा कभी स्वामी के रूप में नहीं स्वीकारा गया व्यक्ति थोड़े से रास्ते परिवर्तन के बाद जगत स्वामी हो जाता है. नेशनल से लेकर वह इंटरनेशनल हो जाता है. ओशो की तरह महान और स्वामी इच्छाधारी की तरह पहचान बना लेता है. योग से भोग और फिर संभोग से समाधी तक का शार्टकट रास्ता दिखाने वाला महान दार्शनिक ओशो की तरह वह भी अमेरिका जैसे शहरो में स्वंय का शहर - नगर - महानगर बसा सकता है. बस करना क्या है यह कोई नहीं बताता लेकिन सभी बाबाओं के जलवे देख कर मन में यही तराना गुंजने लगता है कि  ''हर तरफ मेरा ही जलवा ......!'' अब बाबा बनने का एक फायदा यह होता है कि मोदी से लेकर लेकर शिवराज तक पैरो के नीचे बैठे कहते रहते है कि ''बाबा जी हमारे लायक कोई सेवा हो तो एक बार हमें भी आपकी सेवा का मौका तो दीजिए......!'' मुख्यमंत्री से लेकर संत्री तक के साथ फोटो छपने के बाद यदि कोई स्कैण्डल में फंस भी गये तो मंत्री से लेकर संत्री तक स्वंय अपने को बचाने के चक्कर में आपको झुठा फंसाने का तराना तो जरूर गायेगें. देश में बाबा बनने की तरकीब अच्छी है. इससे आपके पचास फायदे है लेकिन जो पक्के है उनमे पहला नाई का खर्चा बचेगा. दुसरा साबुन और शैम्पू से नहाने का खर्च बचेगा. तीसरा मंहगे कपड़ो का खर्चा बचेगा. चौथा आने - जाने के किराये का खर्चा बचेगा. पांचवा खाने और पीने का भी खर्चा बचेगा. गोबर की या फिर शमशान की राख को शरीर में लगाने से बाबा बनने की पहली राह आसान हो जायेगी. मैने एक पुस्तक में पढ़ा था कि सफल ज्योतिषी कैसे बने...? उस किताब की तरकीब बाबा बनने पर अचमाई जा सकती है. जैसे कोई भक्त आपके पास आकर सवाल करता है कि ''बाबा मेरे घर लड़का होगा की लड़की ......!'' उसे यदि लड़का बताया तो अपने पास की डायरी में लड़की लिखो यदि वह आकर कहता है कि ''बाबा आपने झुठ बोला था , मेरे घर तो लड़की हुई है ......!'' तब उसे गालियां देकर दुत्कार कर - फटकार कर यह कहो कि ''मूर्ख बाबा को झुठा साबित करता है , देख मैने अपने चेले से इस डायरी में तेरे नाम के आगे क्या लिखा था.....!'' कुछ दिनो बाद तो आप कहो कुछ और लिखो कुछ के चलते इतनी प्रसिद्धी पा जाओगें कि लोगो की आपके दरबार में कतारे लगना शुरू हो जायेगी. पहले पैदलछाप आया करते थे कुछ दिनो और महिनो बाद हवाई जहाज आना शुरू हो जायेगा. बाबा बनने का एक यह भी है कि बाबा के पास खाने और पीने की कोई कमी नहीं रहेगी. पीने के पानी को तरसने वाले बाबा के पास मिनरल वाटर होगी साथ में फलो का और फूलो का जुस भी जिसको पीने के बाद बाबा में वह ताकत और फूर्ति आ जायेगी कि वह रामदेव से लेकर कामदेव से भी अधिक कलाबाजी दिखा पायेगा. मुझे हर हाल में बाबा बनना है. बाबा बनने से परिवार की जवाबदारी से भी छुटकारा मिल जायेगा. बीबी से लेकर टी वी तक की वहीं घिसी - पिटी किस्से कहानियों से भी छुटकारा मिल जायेगा. बाबा बनने के लिए मैने सोचा है कि मैं अपने शहर के बाहर से चार - पांच मेरी तरह के चतुर - चालक लोगो को अनुबंध पर लेकर आ जाऊ ताकि वे शहर और गांव में जाकर मेरी कीर्ति और यश का गान कर सके. दो चार टुर्चे टाइप के भूखे - नंगे पत्रकारो और टी वी चैनलो के रिर्पोटरो और कैमरामेनो को भी अपनी गिरोटी में शामिल करने से एक फायदा मिलेगा कि वे लोग मुझे भी कुंजीलाल और बिरजू की तरह हाईलाइट कर देगें. ऐसा करने से मेरी लोकप्रियता की टी आर पी भी बढ़ेगी और मैं भी सफेद उल्लू की तरह भगवान श्री हरि विष्णु के वाहन गरूड़ महाराज की तरह पूजा जाऊंगा. जिस रामू को अब तक कोई घास नहीं डालता था उसके पास तक पहुंचने वालो की आस ही मुझे श्री श्री एक हजार चार सौ बीस रामूदेव बाबा का दर्जा दिला देगी. जिस देश में आज भी असली की जगह नकली को पूला जाता है. स्थिति तो यह तक है कि इस देश में जगतगुरू शंकराचार्य तक नकली हो सकते है तब मेरे रामूदेव बाबा बनने की राह में कौन हरामी की लाल रोड़ा अटका पायेगा. बाबा बनने के फायदे को देख कर मै सोच रहा हँू कि वन विभाग की किसी पहाड़ी पर अतिक्रमण करके एक आश्रम बना लेता हँू. आश्रम ऐसी जगह पर हो कि लोगो को आने और जाने में आसानी हो इसलिए मैं सोचता हँू कि सेन्टर पाइंट बरसाली की पहाड़ी सबसे अच्दी रहेगी. इसका आगे चल कर फायदा यह होगा कि सेन्टर पाइंट बरसाली रेल्वे स्टेशन माडल स्टेशन बन जायेगा और फिर राजधानी से लेकर शताब्दी एक्सप्रेस तक रूका करेगा. बाबा होने के कारण मेरे चेले चपाटो में ऐसे हाई - फाई लोग जुड़ जायेगे कि उनके हवाई जहाजो की लेडिंग के लिए एक हाई प्रोफाइल हवाई पटट्ी भी बन जायेगी. कुछ दिनो तक लोकल चैनल पर चाचा से मिल कर अपना लाइव टेलिकास्ट करवाने के बाद खुद का ही रामूदेव बाबा चैनल शुरू कर देगें. दिन भर अपने उल्टे - सीधे आलेखो व्यंग को ही अपने प्रवचनो का आधार बना कर लोगो को नित्य नई अपनी काल्पनिक कथाओं के गहरे सागर में गोते लगवायेगें. वैसे भी मेरी बीबी से लेकर बच्चे तक मुझे मेरे यार - दोस्तो की तरह फेकोलाजी का मास्टर मान चुके है.मै फेकने में इतना मास्टर मांइड हँू कि मेरे सामने कोई भी बाबा और बाबी टिक नहीं पायेगें. मेरे बाबा बनने की राह मेरी टांग टुटने के बाद और भी आसान हो गई है क्योकि अब तो घुमना - फिरना - मोटर साइकिल चलाना संभव नहीं है ऐसे में कमाई का सबसे अच्छा तरीका रामू बाबा बनने से कोई दुसरा दिखाई नहीं देता. बाबा बनने के बाद मेरे जिले के कलैक्टर कार्यालय का लखन काका मुझे भाव नहीं देता उसी  लखन काका से बड़े कई लोग अपने आला अफसरो के साथ कतार में खड़े होकर मुझे भाव देने के लिए मरे जायेगें. मेरा दिन प्रतिदिन भाव भी बढ़ता जायेगा. मेरे फिर कोठी बाजार से लेकर रिलायंस के बिग बाजार में तक में आसमान को छुते भाव स्क्रीन पर नज़र आयेगें. उन बाजारो में मेरी फोटो से लेकर चरण पादुका तक बेभाव बिकेगी . इस तरह मैं रातो रात महान बन जाऊंगा क्योकि बुर्जग लोग कहते है कि राई के भाव रात में ही बढ़ते है. मैं भी तो राई नहीं रामू भाई हँू इस बात में कोई दो मत नहीं लेकिन मुझे कोई रामूदेव बाबा न बनाये . आज नहीं तो कल मैं अपने गांव से लेकर वाशिंगटन तक का सर्वाधिक खुलने वाली बेवसाइट की तरह लोकप्रिय - जनप्रिय बाबा बन जाऊंगा लेकिन कोई तो मुझे भी आसाराम - रामदेव - कामदेव की तरह बाबा बनाये.  भैया लोग याद रखना कहीं गलती से मुझे शैलेन्द्र बाबा ना बना देना ...? वरणा मुझे लोग भाजपा का मीडिया प्रभारी समझ कर मुझे ही नोचने - खरोचने लग जायेगें. वह तो भला हो शैलेन्द्र बाबा की हिम्मत का जिसकी दाद देनी चाहिये कि वह इतने सारे अपनी बिरादरी के लोगो को झेल पाते है. मेरा इस समय बाबा बनने का टाइम भी सही है क्योकि गर्मी पडऩे के बाद लोग ठंडे स्थान पर चले जाते है. ऐसे में बरसाली की पहाडिय़ा सबसे ठंडी है. बरसात में उस स्थान पर शानदार झरना है इसलिए पर्यटन की दृष्टि से यह स्थान सबसे बढिय़ा स्थान रहेगा. मैं अपने लोगो से बार - बार यही कहता हँू कि मुझे बाबा बनाओ , मुझे बाबा बनाओ ....?  बाबा बनने से मकान मालिक का किराया देने का , बिजली के बिल भरने का , पेपर छपवाने का , पेपर के लिए विज्ञापन मांगने का , होली - दशहरा साहब लोगो से भीख मांगने का , लिफापा मांगने का चक्कर बच जायेगा. मेरे बाबा बनने से भाई लोगो का सबसे ज्यादा फायदा होगा क्योकि वे मेरे टेंशन में दिन प्रतिदिन और भी काले होते चले जा रहे है. उन्हे फिर किसी तंत्र - मंत्र क्रिया की जरूरत नहीं पड़ेगी और तो और उनके कोर्ट - कचहरी के चक्कर में जेल जाने का डर भी नही रहेगा. कोई यदि आगे नहीं आता है तो भाई लोगो को ही मुझे बाबा बनवा की तरकीब सोचना चाहिये. वैसे भी भाई लोग किसी को भी बाबा और दादा बनाने में एक्सपर्ट है. बाबा बनने के इतने सारे फायदे गिनाने के बाद कहीं ऐसा न हो कि मेरे से पहले भाई लोग ही बाबा बन जायें. वैसे देखा जाये तो बाबा बनने से जो मान - सम्मान मिलता है वहीं भीख मांगने से भी नहीं मिलता. बाबा बनने का एक सबसे बढिय़ा फायदा यह है कि अपनी भी सीडी वाले और इच्छाधारी बाबा की तरह लाटरी लग जायेगी. पांच सौ तो नहीं पर चार - पांच तो अपनी भी सेवा चाकरी में लगी रहेगी लेकिन बाबा बनने से पहले मुझे बार - बार इस बात का डर सता रहा है कि कहीं मेरी उन बाबाओं की तरह पुलिस और जनता ने कंबल कुटाई और सार्वजनिक धुलाई कर दी तो मेरी तो अभी एक टांग टूटी है बाद मे पता चला कि मैं जगह - जगह से टूट - फूट जाऊंगा और लोग मुझे टूटे - फूटे - खुब पिटे बाबा जी की तरह जानने - पहचानने लग जायेगें. बाबा बन कि नहीं यह सोच कर मन बार - बार कांप जाता है कि क्या करू क्या न करू.....? मेरी अंतरआत्मा से जब मैने इस बारे में सवाल किया तो उसने मुझे दुत्कार और बुरी तरह फटकारा वह कहने लगी कि ''जवाबदेही और जिम्मेदारी से मुँह मोड़ कर भागने वाला बाबा नहीं कायर - डरपोक इंसान होता है , परिवार और संघर्ष के साथ लडऩे वाला ही महान होता है. कई लोगो की जब हिम्मत टूट जाती है तो वे आत्महत्या कर लेते है. लेकिन तेरी टूटी टांग फिर जुड़ जायेगी लेकिन एक बार टूटी हिम्मत कभी नही जुड़ पायेगी. सहीं इंसान बनना है तो अपने परिवार - बीबी - बच्चो की जिम्मेदारी का वहन करो और अच्छे आदर्श पति -पिता बनने की कोशिस करो ताकि लोग आने वाले कल में तुम्हारी तारीफ कर सके कि इतने संघर्ष के बाद भी यह इंसान टूटा नहीं बल्कि सारे बवडंरो को झेलने के बाद भी आज भी पत्थर रूपी शिला की तरह टिका है. बाबा बनने से लोग यही कहेगें कि देखो बीबी - बच्चे पाल नहीं सका और बाबा बन गया डरपोक कही का ........!'' अंतरआत्मा की आवाज को सुनने के बाद मैने सोचा कि भगवान ने दो हाथ दिये है इसी से ऐसा कुछ लिखा जाये कि समाज में मेरी तरह कोई दुसरा बाबा बनने की हिमाकत न कर सके.

Sali Yani Aadhi Gahrwali

''जीजाजी मैं कब आपकी आधी से पूरी घरवाली बनूगी......!
व्यंग्य :- रामकिशोर पंवार रोंढ़ावाला
आजकल टी वी चैनलो पर मनोरंजक हास्य - परिहास से ओत- पोत धारावाहिको के प्रसारण की भरमार है। इस समय सास - बहू के बीच तू - तू - मैं - मैं वाले धारावाहिको में एक है ''मैं कब सास बनूगी .....! इस धारावाहिक को देख कर मुझे एक चुटीले आलेख की पृष्ठभूमि मिल गई जिसका मैं शीर्षक यह बनाया कि ''जीजाजी मैं कब आपकी आधी से पूरी घरवाली बनूगी......! दर असल में यह किसी साली की पीड़ा या वेदना नहीं है कि वह कब अपने ''जीजाजी की आधी से पूरी घरवाली बनेगी......! दरअसल में यह दर्द उन जीजा लोगो का है जो कि समाज में मौजूद उस कथित मानसिकता का बोझ ढो रहे है जिसमें यह कहा जाता रहा है कि  ''साली तो आधी घरवाली होती है.......! अब उन लोगो की तो लाटरी लग जाती है जिन्हे एक के बदले आधा दर्जन साली ब्याज में मिल जाती है। ऐसे लोगो की तो आधा दर्जन साली आधी घरवाली हो जायेगी लेकिन उन लोगो का क्या होगा जिनकी घरवाली किसी की साली होने के साथ आधी घरवाली होगी......? ऐसे में शकीला पति तो किसी नदी नाले में डुबकी लगा लेगा या फिर कच्ची देशी ठर्रा पीकर किसी चौराहे पर लुढ़का हुआ मिलेगा। ईश्वर न करे किसी पति को शक के चलते किसी भी प्रकार के गम में या रम में डुबना पड़े। साली के बारे में अनेक किस्से कहानियां पढने को मिलती रहती है। साली रसमलाई भी है और वह हल्दीराम की नमकीन भी है। यदि साली को चाट और भेलपुड़ी कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हम सब की माँ - बहने - बहू - बेटी - मामी - फूफी - चाची - भाभी - यहाँ तक नानी और दादी भी किसी न किसी की साली रही है। ऐसे में उन लोगो के ससुराल में साली का न होना एक प्रकार का अभिश्राप होगा जिन्होने साली को लेकर लम्बी - चौड़ी अभिलाषा पाली रखी थी। साली के बिना जीवन किसी विधुर पुरूष की तरह या विधवा नारी की तरह होता है। साली के न होने का दर्द उस कहावत के समान है कि ''बांझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा.....! अब ऐसे में उन लोगो का दर्द बाटने वाला कहां मिलता है जो कि ऐसे लोगो को साली की सुविधा उपलब्ध करवा सके। आने वाले फागुन के गुलाल और रंग के लिए किसी राखी सावंत जैसी साली के लिए नगरपालिका या सरकारी किसी मोहकमे से बोल - चाल कर निविदा या टेण्डर या कोटेशन मंगवा लेते लेकिन हाय री किस्मत इस बसंत बहार के मौसम में जब अंगना में उड़े  रे गुलाल और हम करते रहे साली न होने का मलाल.......!  आज के इस रंगीन मौसम में कोई कुछ भी कहे लेकिन हमारी तो आदत है बक - बक कहने की ...... हमारी बक - बक का लोग भले ही अर्थ का अनर्थ निकाले पर यह बात तो सोलह आने सच है कि इस बार जब ससुराल में साली न हो , पडौसन मतवाली न हो तब हम जैसे लोग आखिर किससे कहे कि रंग - बरसे और बलम तरसे .......! किसी को यकीन हो न हो पर साली के लिए हर साल की तरह इस साल भी तरसे ......!  मुझे एक बात आज तक समझ में नहीं आती है कि लोग साली के बिना होली या रंग पंचमी कैसी होती है......? कुछ लोगो जब यह कहते कि साली फुलझड़ी है तो कुछ लोग उसे एटम बम बताते है। मैं साली को मिसाइल या तोप मानने के बजाय उसे दिल के किसी कोने में मचलती जीजा - साली के बीच तय सामाजिक रिश्तो में बधी उस मर्यादा मानता हँू जिसमें स्वस्थ मनोरंजन - हास्य - परिहास - हसी - ठिठोली कहा जाता रहा है। भारतीय समाज में साली को को जो दर्जा मिला है वह मर्यादा से बंधा है लेकिन जब - जब मर्यादा अपनी सीमा से बाहर होती है किसी न किसी प्रकार की अप्रिय घटना या वारदात किसी न किसी परिवार को ले डुबती है। जो लोग साली को आधी घरवाली मानते है वे लोग साले को आधा घरवाला क्यों नहीं मानते.....? साले बारे में हमारे समाज की मानसिकता में अलग प्रकार की धारणा है। लोग कहते है कि खेत में नाला नहीं चाहिये , ससुराल में साला नहीं चाहिये , घर में आला नहीं चाहिये , फसल के लिए पाला नहीं चाहिये.....! जिस समाज में लोग खेत के बहने के लिए नाले को - बेड़ा गर्क होने पर साले को - घर के गिरने पर आले को - फसल के ठीक से न उग पाने के लिए पाले को जवाबदार मानते है ऐसे लोगो को चाहिये कि वे अपनी साली और साले के प्रति धारणाओं को बदले। मेरा मतलब यह कदापि यह नही है कि मेरी साली नहीं है तो मैं लोगो की साली के साथ उनके इंटर टीटमेंट में किसी खलनायक की भूमिका निभाऊ......! सामाजिक रिश्तो में तो यह कहा गया है कि छोटी साली बहन और बेटी की तरह होती है लेकिन ऐसा मानने वाले या समझने वाले बहँुत कम होगें। मेरे एक मित्र ने मुझे एक नया अनुभव बताया उसका कहना है कि कोई भी व्यक्ति किसी राह चलती युवती या महिला को आखिर किस रिश्ते में देखे......!  यदि वह उसे माँ समझे तो उसके बाप का चरित्र पर कीचड़ उछलेगा। बहन समझे तो जीजा की इमेज खराब होगी। भाभी समझे तो भैया पर मुसीबत आयेगी। मामी समझे तो बेचारा मामा ब्याज में जूते खायेगा। चाची समझेगा तो चाचा का हाल का बेहाल हो जायेगा। ऐसे में उसके सामने सामने वाली को कुछ और समझने और दुसरो के चरित्र पर लालछन लगे इससे अच्छा है कि वह खुद ही बदनामी का ठीकरा अपने सर पर फोड़ ले ......! सामाजिक रिश्तो में वैसे देखा जाये तो साली आधी की जगह पूरी घरवाली तो कई लोगो की बनी है लेकिन उन बहनो का भी बसा - बसाया घर संसार लंका की तरह जल कर राख हो गया जिसे सोने की कहा जाता रहा है।  सुखी परिवार तब तक सुखी रहता है जब तक की उस कोई आफत न आ आये लेकिन साली तो चलती फिरती आफत होती है। इसी तरह साला भी ज़हर के प्याले की तरह होता है जब तारक मेहता के उल्टा चश्मा की दया भाभी के भाई सुदंर की तरह साला मिल जाये.....!
            कभी - कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि हमारे जैसे लोगो के साथ उनके ससुराल वालो ने इतना बड़ा अन्याय क्यो किया। यदि हमारे ससुराल वाले बता देते कि भैया तुम्हे अपनी बीबी के साथ में इनाम के रूप में कोई साली या आधी घरवाली की स्कीम नहीं मिलेगी.....! यदि वो पहले ही दुत्कार- फटकार - लताड़ देते तो हम उसी समय कोई दुसरा घर या ठौर ठिकाना ढुंढ लेते.....! कम से कम आज की इस उम्र की पीड़ा से पींड तो छुट जाता। अब उन लोगो को तो मेरे साथ मिल कर एक साली की डिमांड को लेकर युनियन बना लेनी चाहिये और हमें भी साली दिलाओ बैनर के तले सास - ससुर के द्धारा किये गये अन्याय के खिलाफ दस जनपथ पर गुहार लगानी चाहिये। सरकार सबके लिए कोई न कोई योजना - पैकेज - लालीपाप लेकर आ जाती है लेकिन आजादी के इतने साल बाद भी किसी भी सरकार ने साली विहीन जीजा लोगो के लिए कोई विशेष पैकेज नहीं लाया और न दिया। ऐसे में हमें उन नारी शक्तियो की भी जरूरत पड़ सकती है जिनके कोई जीजा नहीं है। साझा प्रदर्शन से हो सकता है कि सरकार हम दोनो पीडि़त पक्षो के बीच कोई सुलहनाम या समझौता करवा दे जिसके चहते बिना जीजा वाली नारी को जीजा और बिना साली वाले जीजा को साली मिल जाये। सरकार को ऐसी अति महत्वाकांक्षी योजनाओ को सरकारी मोहर लगानी चाहिये लेकिन सरकार को ऐसे लोगो के बारे में सोचने के बजाय वह बिना वजह के पाकीस्तान और अमेरिका के पीछे पड़ी रहती है। अब देश के राजनैतिक दलो का भी हाल इस अहम मुद्दे पर संतोषप्रद नहीं है। अब नेतओ की बात करे तो उनकी तो सेके्रटी साली की तरह ही होती है जो कि उनके हर परसनल फाइलो को निकालती और संभालती रहती है। ऐसे में राजनैतिक पाटी के नेता भी इस अहम अंतराष्ट्रीय सवाल पर क्यों आ गले पड़ जा की तरह महत्व दे। इस देश में साली के बिना चंाद पर जाने की या चांद हो जाने की परिकल्पना नही की जा सकती। अथ श्री साली पीड़ा अध्यात्म को अब मैं यह पर समाप्त करता हँू क्योकि मुझे किसी ने बताया कि इंटरनेट की गुगल बेव साइट पर सर्च इंजीन में डब्लयू - डब्लयू साली डाट काम लिख कर सर्च करने से साली मिल सकती है। अब आप लोगो से मैने साली के न होने की जो पीडा बाटी है उसे किसी से मत कहना वरना मैं समाज में किसी को मँुह दिखाने के लायक नहीं रहँूगा क्योकि जिसकी भी साली होगी वह मुझे तिस्कार की दृष्टि से देखेगा तथा हर राह चलती वह नारी भी मुझे देख कर ताने मारती फिरेगी और अपनी सखी - सहेली से कहती फिरेगी देखो बेचारा कितना बदनसीब है उसके साली भी उसके करीब नहीं है। अब मैं इन सब बातो को यही पर विराम देते हुये उस ईश्वर से सिर्फ यही कह सकता हँू कि हे भगवान तेरा क्या चला जाता यदि तू मुझे घरवाली के साथ - साथ एक साली दे जाता......!