''छबि तुझे सलाम ......!''
लेख:- रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ावाला ''
''जननी से बड़ी होती है जन्मभूमि '' उसका कर्ज अदा करना सबसे पहला धर्म है. लोगो ने कहा भी है कि ऋण कई प्रकार के होते है. जिसमें एक ऋण उस भूमि का भी होता है जहां पर आपका जन्म हुआ है. कई बार ग्रामीण आम बोलचाल की भाषा में लोग किसी को कहीं जाने के लिए बाध्य करते है और वह जब जाने से मना कर देता है तो लोग उसे ताना मारते है ''क्यो यहां पर तेरा नरा गड़ा है क्या..! '' नरा का अभी प्राय: उस नली से होता है जो गर्भ में शीशु को प्राण वायु से लेकर आहार तक पहुंचाती है. बच्चे का जब जन्म होता है तब दाई या गांव की बड़ी - बर्जुग महिला उस नली को तेज धारधार चाकु - छुरी - हथियार से काट कर उसे घर के ही किसी कोने में गाड़ देती है . ऐसा पहले होता था लेकिन अब तो नर्स और मंहगे हास्पीटलो के कारण गांवो के बच्चो के भी भी वह नली कहां गायब हो जाती है किसी को पता तक नहीं है. आज यही कारण है कि इस नई पौध का अपने गांव या जन्मस्थान से मोह नहीं होता क्योकि उनकी जन्मभूमि तो हास्पीटल का प्रसुति जननी कक्ष होता है इसलिए उसके मन - दिल - दिमाग में अपनी जन्मभूमि के प्रति वह प्यार या अपनत्वपन दिखाई नहीं देता जो मुझे राजस्थान के उस छोटे से गांव सोढ़ा की ग्राम पंचायत सरपंच सुश्री छबि राजावत के दिलोदिमाग में दिखाई दिया. राजस्थान जहां पर लड़की का पैदा होना अभिश्राप माना जाता है. जहां पर पैदा होते ही लड़कियो को मार दिया जाता है. उस राजस्थान के एक छोटे से गांव में जन्मी लड़की ने एम बी ए की पढ़ाई करने के बाद देश - विदेश की हाई प्रोफाईल नौकरी - जाब को छोड़ कर गांव की सरपंची करने का मन बना कर अपने गांव को लौटना रास आया तो ऐसी लड़की की जितनी तारीफ की जाये कम है. मेरा मन तो ए आर रहमान की तर्ज पर ''छबि तुझे सलाम ......!'' कहने को उतावला हो रहा है. छबि की छबि को आंखो में देख कर नहीं लगता कि जींस टी शर्ट पहन कर घुडसवारी करने वाली इस शहरी लड़की का दिल अचानक कैसे पसीज गया और वह एसी - कुलर हाई प्रोफाइल जिदंगी को बाय - बाय करके गांव की रेतली मिटट्ी में आकर रम गई. छबि को देखने के बाद ऐसा लगा कि राजस्थान जिसके बारे में कहा जाता है कि ''इस मिटट्ी का तिलक करना चाहिये , क्योकि यह मिटट्ी - रेत उस राजस्थान की है जहां पर शौर्य और वीरता का इतिहास भरा पड़ा है...'' शौर्य गाथा वह भी राजस्थान की सुनने के बाद तो मुर्दे में भी जान आ जाती है. ऐसे प्रदेश की छबि को बार - बार मन सलाम करना चाहता है. पूरे देश में जी न्यूज पर दिन भर छाई रही छबि की स्पेशल स्टोरी हर न्यूज चैनल पर विश्व महिला दिवस पर दिखाई गई कि वह किस तरह एम बी ए की शिक्षा प्राप्त करने के बाद आई टी सिटी पुना को बाय - बाय करके अपने गांव को लौट आई. किसी फिल्मी तारीका या माडल से कम न दिखने वाली छबि जब जी न्यूज की महिला आरक्षण को लेकर बहस में हिस्सा लेकर अच्छे - अच्छे नेताओ की बोलती बंद करके उन्हे चैलेंज करती थी कि गांव की महिलाओ को भी आत्म सम्मान मिलता है यदि आपकी नीयत साफ हो .....? छबि सभी से कहती थी कि वे लोग मेरे गांव को आकर देखे और वहां की महिला पंचो से मिले और उनसे पुछे कि वे पहले और अब के समय कैसा महसुस कर रही है. ग्राम पंचायतो में आरक्षण के बाद आरक्षित पद पर सरपंच का चुनाव दो अन्य महिलाओं को हरा कर जीती छबि कहती है कि ''इस गांव में कभी मेरे दादा सरपंच थे , आज मैं सरपंच बनी हूं .'' महिलाओ को आत्म सम्मान देने से ही आपकी नीयत का पता लगता है. छबि को देख कर एक बार फिर मुझे बेटी के न होने का दर्द होने लगा. काश मेरी भी बेटी होती , वह भले एम बी ए पास न होकर यदि बारह क्लास तक पास होने के बाद मेरे गांव की सरपंच बनती तो शायद मुझे ऐसा लगता कि मैने उसके बहाने अपनी जन्मभूमि का थोड़ा - बहुंत कर्ज अदा कर दिया. गांव की पेयजल समस्या हो या फिर गांव की सड़क हर जगह छबि के रूप में काम करती मेरी बेटी की कल्पना ने आज इस लेख की रचना ही कर डाली. समाज में मरी तरह सोचने वालो की कमी नहीं है पर क्या करे जहां वंश चलाने की बात आती है तो वे लोग बेटे की चाह को पाल लेते है. एक प्रकार से देखा जाये तो वंश बेटी भी चलाती है. आखिर छबि ने अपने दादा का बार - बार जिक्र करके उस राजावत वंश को भी तो एक नाम और पहचान दी है. जिसे कल तक राजस्थान की सोढ़ा ग्राम पंचायत के लोग ही जानते थे. मात्र 15 सौ की आबादी में 15 परिवारो के इस राजावत परिवार की इस छोरी ने वो काम कर डाला कि कई पीढ़ी उसे याद रखेगी. आज मेरी मृत अबभिलाषा ने एक बार फिर उस टीस को जिंदा करके मुझे रोने को मजबुर कर दिया कि मैं अपने जीवन में अपनी बेटी का कन्यादान नहीं कर पाऊंगा.....? बेटी की कमी उस व्यक्ति को ज्यादा होती है जिसकी अपनी कोई बेटी नहीं होती है. आज के समय मैं अपने ही अपने भाई समकक्ष मित्र एवं गुरू अजय कुमार वर्मा की किस्मत की सराहना करना चाहुंगा जिनकी बेटियो ने आई टी के क्षेत्र में बैतूल बाजार से लेकर विदेशो तक में जाकर अपने माता - पिता का नाम ऊंचा कर दिया. अजय भैया की बेटियो ने जो आज मुकाम हासिल किया उसके पीछे उसकी मम्मी का हाथ जरूर है क्योकि अपने जमाने की अग्रेंजी में एम ए शिक्षा प्राप्त हमारी इस भाभी ने अपने सपनो को अपनी बेटियो के साथ साकार कर लिया. आज के समय अजय भैया एवं भाभी दोनो को सलाम करने को मन करता है. वह इसलिए नहीं कि वे मेरे भैया - भाभी है वह इसलिए कि उन्होने ने मेरी उस नन्ही सी भतीजी मोना को सोना बना डाला. आज लाखो - करोड़ो की मालीक बनी मोना किसी सोने से कम नहीं है. उसने मां की शिक्षा और दिक्षा का पूरा फायदा उठाया और आज विदेश में अपने ही वर्मा वंश का नाम तो रोशन कर रही है. ऐसी बेटियो को बार - बार नमन - अभिनंदन और उनका चरण वंदन ...... आज पूरा देश महिला आरक्षण की बात को लेकर बहस और प्रतिष्ठा की लड़ाई को देख रहा है लेकिन कोई भी सही मायने में दुनिया की आधी आबादी की बर्बादी को नहीं रोक पा रहा है. महिला को आत्म सम्मान तभी मिलेगा जब हम उन्हे अपने बगल में बैठने का हक देगें. पूरे जीवन में शायद किसी भी महिला को शादी के बाद ऐसा दुसरा मौका बहुत कम ही मिलता है जब वह अपने पति याने पुरूष के बगल में बैठ पाती है. स्थिति तो यहां तक आज भी है गांवो में नहीं बल्कि शहरो में कि अपनी ही बेटी को लोग अपनी बगल में बैठने का अवसर तक नहीं देते. ऐसे में उसे समान अधिकार देने की बाते करना बेईमानी होगी. मैं बैतूल जैसे आदिवासी जिले के एक छोटे से गांव में रहता हँू लेकिन जब भी गांव आता - जाता रहता हँू तो मुझे बार - बार उस कर्जदार की दुत्कार सुनाई देती है जो मुझे लताड़ता है कि ''तू अपनी जन्मभूमि का कर्ज कब अदा करेगा......!'' आज वास्तव में मेरे अपने गांव की दशा और दिशा के लिए मैं भी कुछ हद तक जिम्मेदार हूं. मुझे शहरो का मोह छोड़ कर गांव की उस पगडंडी को पकडना चाहिये जो कि मेरा बरसो से इंतजार कर रही है. लोग गांव छोड़ कर जा रहे है पर मैं शहर छोड़ कर गांव नहीं जा पा रहा हँू. हालाकि मैं अकेला पैदल ही गांव के लिए निकलू तो दोपहर तक गांव पहुंच जाऊंगा लेकिन गांव में अपनी माता मैया और चम्पा के पेड़ के सिवाय मेरा अपना बचा ही क्या है. माता मैया और चम्पा का पेड़ भी पूरे गांव का है ऐसे में मैं सिर्फ यह कह सकता हँू कि ''इस गांव में मेरा भी नरा गड़ा है इसलिए यह गांव मेरा भी है.....!'' चलते - चलते एक बार फिर मुझे और मेरे गांव को भी इस बात की तलाश रहेगी कि ''काश मेरे गांव को भी कोई छबि मिल जाये ......!''
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